________________ [615 चौतीसवां अध्ययन : लेश्याध्ययन] [23] जो ईष्यालु है, अमर्ष (असहिष्णु-कदाग्रही) है, अतपस्वी है, अज्ञानी है, मायी है, निर्लज्ज है, विषयासक्त है, प्रद्वेषी है, शठ (धूर्त) है, प्रमादी है, रसलोलुप है, सुख का गवेषक है 24. आरम्भाओ अविरओ खुद्दो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे // [24] जो प्रारम्भ से अविरत है, क्षुद्र है, दुःसाहसी है, इन योगों से युक्त मनुष्य नीललेश्या में परिणत होता है। 25. वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए / [25] जो मनुष्य वक्र (वाणी से वक्र) है, प्राचार से वक्र है, कपटी (कुटिल) है, सरलता से रहित है, प्रतिकुञ्चक (स्वदोषों को छिपाने वाला) है, औपधिक (सर्वत्र छल-छद्म का प्रयोग करने वाला) है, मिथ्यादृष्टि है, अनार्य है 26. उप्फालग-दुद्रुवाई य तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो काउलेसं तु परिणमे // [26] उत्प्रासक (जो मुंह में पाया, वैसा दुर्वचन बोलने वाला) दुष्टवादी है, चोर है, मत्सरी (डाह करने वाला) है, इन योगों से युक्त जीव कापोतलेश्या में परिणत होता है / 27. नोयावित्ती प्रचवले अमाई अकुऊहले। _ विणीयविणए दन्ते जोगवं उवहाणवं / / [27] जो नम्र वृत्ति का है, अचपल है, माया से रहित है, अकुतूहली है, विनय करने में विनीत (निपुण) है, दान्त है, योगवान् (स्वाध्यायादि से समाधिसम्पन्न) है, उपधानवान् (शास्त्राध्ययन के समय विहित तपस्या का कर्ता) है 28. पियधम्मे दढधम्मे वज्जभीरू हिएसए। एयजोगसमाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे // [28] जो प्रियधर्मी है, दृढ़धर्मी है, पापभीर है, हितैषी है, इन योगों से युक्त तेजोलेश्या में परिणत होता है। 29. पयणुक्कोह-माणे य माया-लोभे य पयणुए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा जोगवं उवहाणवं // [26] जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ (कषाय) अत्यन्त पतले (अल्प) हैं, जो प्रशान्तचित्त है, अात्मा का दमन करता है, योगवान् तथा उपधानवान् है 30. तहा फ्यणुवाई य उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्ते पम्हलेसं तु परिणमे / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org