________________ 614] [उत्तराध्ययनसूत्र [16] जैसे बूर (वनस्पति-विशेष), नवनीत (मक्खन) अथवा शिरीष के पुष्पों का स्पर्श कोमल होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक कोमल स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्याओं का होता है / विवेचन--प्रशस्त-प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श-प्रस्तुत में भी अप्रशस्त एवं प्रशस्त लेश्याओं के कर्कश-कोमल स्पर्श का तारतम्य पूर्ववत् जानना चाहिए / 6. परिणामद्वार 20. तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा / दुसओ तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो / / [20] लेश्याओं के तीन, नौ, सत्ताईस, इक्कासी, अथवा दो सौ तैंतालीस प्रकार के परिणाम (जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट आदि) होते हैं। विवेचन परिणाम : स्वरूप, संख्या-जैसे वैर्यमणि एक ही होता है किन्तु सम्पर्क में पाने वाले विविध रंग के द्रव्यों के कारण वह रूप में उन्हीं के रूप में परिणत हो जाता है, इसी प्रकार कृष्ण लेश्या आदि नीललेश्या आदि द्रव्यों के योग्य सम्पर्क को पाकर नीललेश्या आदि के रूप में परिणत हो जाती है। यही परिणाम है। इस प्रकार के परिणाम जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट आदि के रूप में 3,6,27,81, या 243 संख्या तक हो सकते हैं। 7. लक्षरगद्वार 21. पंचासवप्पबत्तो तीहिं अग्रत्तो छसु अविरओ य। तिब्वारम्भपरिणओ खुद्दो साहसिनो नरो॥ [21] जो मनुष्य पांच पाश्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों से अगुप्त है, षट्कायिक जीवों के प्रति अविरत (असंयमी) है, तीव्र प्रारम्भ (हिंसा आदि) में परिणत (संलग्न) है, क्षुद्र एवं साहसी (अविवेकी) है 22. निद्धन्धसपरिणामो निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे // [22] निःशंक परिणाम वाला है, नृशंस (क्रूर) है, अजितेन्द्रिय है, जो इन योगों से युक्त है, वह कृष्णलेश्या में परिणत होता है। 23. इस्सा-अमरिस-अतवो अविज्ज-माया अहीरिया य / गेद्धी पओसे य सढे पमत्ते रसलोलुए सायगवेसए य / / 2. (क) “से तृणं भंते ! कण्हलेसा नोललेसं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए भुज्जो भज्जो परिणमति ? हता गोयमा ! ........' इत्यादि / ........."नवरं यथा बंडूर्यमणिरेक एव तत्तदुपाधिद्रव्य सम्पर्कतस्तद्र पतया परिणमते, तथैव तान्येष कृष्णलेश्यायोग्यानि द्रव्याणि तत्तन्नीलादिलेश्यायोग्यद्रव्य सम्पर्कतस्तद्र पतया परिणमन्ते इति / -प्रज्ञापना पद 17. सू. 225 वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org