SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 716
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेतीसवाँ अध्ययन : कर्मप्रकृति] [605 पुद्गलों) को सम्यक् प्रकार से ग्रहण (बद्ध) करते हैं / वे सभी कर्म (-पुद्गल) (बन्ध के समय) आत्मा के समस्त प्रदेशों के साथ सर्व प्रकार से बद्ध हो जाते हैं। 19. उदहीसरिसनामाणं तीसई कोडिकोडिओ। उक्कोसिया ठिई होइ अन्तोमुहत्तं जहन्निया / / [16] (ज्ञानावरण आदि कर्मों की) उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। 10. आवरणिज्जाण दुण्हपि वेयणिज्जे तहेव य / अन्तराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया // [20] (यह पूर्वगाथा में कथित स्थिति) दो आवरणीय कर्मों (अर्थात्-ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय) की तथा वेदनीय और अन्तराय कर्म की जाननी चाहिए। 21. उदहीसरिसनामाणं सतरि कोडिकोडिओ। __ मोहणिज्जस्स उक्कोसा अन्तोमुहुत्तं जहन्निया / / [21] मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। 22. तेत्तीस सागरोवमा उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स अन्तोमुहुत्तं जहन्निया // [22] आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। 23. उदहीसरिसनामाणं वीसई कोडिकोडियो / नामगोत्ताणं उक्कोसा अट्ठमुहुत्ता जहन्निया // [23] नाम और गोत्रकर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। 24. सिद्धाणऽणन्तभागो य अणुभागा हवन्ति उ। ___ सम्वेसु वि पएसग्गं सव्वजीवेसुऽइच्छियं // [24] अनुभाग (अर्थात्--कर्मों के रस-विशेष) सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने हैं, तथा समस्त अनुभागों का प्रदेश-परिमाण, समस्त (भव्य और अभव्य) जीवों से भी अधिक है / विवेचन-बन्ध के चार प्रकारों का निरूपण-कर्मग्रन्थ आदि में कर्मबन्ध के चार प्रकार बताए गए हैं-प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबन्ध, स्थितिबन्ध और अनुभाग (रस) बन्ध / प्रकृतिबन्ध के विषय में पहले 12 गाथाओं (4 से 15 तक) में कहा जा चुका है। गाथा 17 और 18 में प्रदेशबन्ध से सम्बन्धित द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से विचार किया गया है। शास्त्रकार का प्राशय यह है कि एक समय में बंधने वाले कर्मस्कन्धों का प्रदेशाग्र (अर्थात्-कर्मपरमाणुओं का परिमाण) अनन्त होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy