________________ तेतीसयाँ अध्ययन : कर्मप्रकृति] [601 [5-6] निद्रा, प्रचला, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला और पांचवीं स्त्यानगृद्धि चक्षदर्शनावरण, अचक्षदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवल दर्शनावरण, इस प्रकार दर्शनावरण कर्म के ये नौ विकल्प (--भेद) समझने चाहिए। 7. वेयणीयं पि य दुविहं सायमसायं च आहियं / सायस्स उ बहू भेया एमेव असायस्स वि // [7] वेदनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है-सातावेदनीय और असातावेदनीय / सातावेदनीय के अनेक भेद हैं, इसी प्रकार असातावेदनीय के भी अनेक भेद हैं / 8. मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा। दसणं तिविहं वुत्तं चरणे दुविहं भवे / / [+] मोहनीय कर्म के भी दो भेद हैं-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय / दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं। 9. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तमेव य / एयाओ तिन्नि पयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे // [6] सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्व-ये तीन दर्शनीय-मोहनीय की प्रकृतियाँ हैं / 10. चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तु वियाहियं / कसायमोहणिज्जं तु नोकसायं तहेव य / / [10] चारित्रमोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है—कषायमोहनीय और नोकषायमोहनीय / 11. सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायजं / सत्तविहं नवविहं वा कम्मं नोकसायजं // [11] कषायमोहनीय कर्म के सोलह भेद हैं। नोकषायमोहनीय कर्म के सात अथवा नौ भेद हैं। 12. नेरइय-तिरिक्खाउ मणुस्साउ तहेव य। देवाउयं चउत्थं तु प्राउकम्मं चरन्विहं / / [12] आयुकर्म चार प्रकार का है--नैरयिक-आयु, तिर्यग्-आयु, मनुष्यायु और चौथा देवायु 13. नामं कम्मं तु दुविहं सुहमसुहं च आहियं / सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्स वि // [13] नामकर्म दो प्रकार का कहा गया है-शुभनाम अोर अशुभनाम / शुभनाम के बहुत भेद हैं, इसी प्रकार अशुभ (नामकर्म) के भो / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org