________________ बत्तीसवां अध्ययन : अप्रमादस्थान] [597 उपसंहार 111. अणाइकालप्पमवस्स एसो सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो / वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण प्रच्चन्तसुही भवन्ति / –त्ति बेमि। [111] अनादिकाल से उत्पन्न होते आए समस्त दुःखों से सर्वथा मुक्ति का यह मार्ग बताया गया है, जिसे सम्यक् प्रकार से स्वीकार (पा) कर जीव क्रमशः अत्यन्त सुखी (अनन्तसुखसम्पन्न) होते हैं। —ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन--निष्कर्ष-अध्ययन के प्रारम्भ में समूल दुःखों से मुक्ति का उपाय बताने की प्रतिज्ञा की गई थी, तदनुसार उपसंहार में स्मरण कराया गया है कि यही (पूर्वोक्त) अनादिकालोन सर्वदुःखों से मुक्ति का मार्ग है / // अप्रमादस्थान : बत्तीसवाँ अध्ययन सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org