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________________ बत्तीसवाँ अध्ययन : प्रमादस्थान] 1575 48. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हो जस्स न होइ तण्हा / तण्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हो जस्स न किंचणाई // [8] (अत:) जिसके मोह नहीं है, उसने दुःख को नष्ट कर दिया / उसने मोह को मिटा दिया है, जिसके तष्णा नहीं है, उसने तष्णा का नाश कर दिया, जिसके लोभ नहीं हैं, उसने लोभ को समाप्त कर दिया, जिसके पास कुछ भी परिग्रह नहीं है, (अर्थात् जो अकिंचन है / ) विवेचन-तीनों गाथाओं का आशय ---प्रस्तुत तीन गाथाओं में निम्नोक्त प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत किया गया है-(१) दुःख क्या है ? जन्म-मरण ही, (2) जन्ममरण का मूल कारण क्या है ? ---कर्म / (2) कर्म की उत्पत्ति किससे होती है ? कर्म की उत्पत्ति मोह से होती है, कर्मों के बीज बोते हैं—जीव के राग और द्वेष / निष्कर्ष यह है कि जन्म मरणरूप दुःख को नष्ट करने के लिए मोह को नष्ट करना आवश्यक है / मोह उसी का नष्ट होता है, जिसके तृष्णा नहीं है / तथा तृष्णा भी उसी की नष्ट होती है जिसके जीवन में लोभ नहीं है, संतोष, अपरिग्रहवृत्ति, नि:स्पृहता एवं अकिंचनता है। क्योंकि तृष्णा और मोह का परस्पर अंडे और बगुली की तरह कार्य-कारणभाव है।' कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ—पाययणं-पायतन-उत्पत्ति स्थान / मोह—जो आत्मा को मूढताओं का शिकार बना देता है / यहाँ मोह का अर्थ----मिथ्यात्त्व दोष से दूषित अज्ञान है / तष्णा मोह का उत्पत्तिस्थान क्यों ? ---किसी मनोज्ञ पदार्थ की तृष्णा मन में उत्पन्न होती है तो उसको पाने के लिए व्यक्ति लालायित होता है, और तब उसके वास्तविक ज्ञान पर पर्दा पड़ जाता है, कि यह पदार्थ मेरा नहीं, मैं इसको पाने के लिए क्यों छटपटाता हूँ ? चूकि पदार्थ की तृष्णा होते ही ममता-मूर्छा होती है, वह अत्यन्त दुस्त्याज्य एवं रागप्रधान होती है / जहाँ राग होता है, वहाँ द्वेष अवश्यम्भावी है। अत: तृष्णा के आते ही राग-द्वेप लग जाते हैं, ये जब अनन्तानुवन्धी कषायरूप होते हैं तो मिथ्यात्व का उदय सत्ता में अवश्य हो जाता है / इस कारण उपशान्तकषाय वीतराग भी मिथ्यात्व (गुणस्थान) को प्राप्त हो जाते हैं / कषाय, मिथ्यात्व आदि मोहनीय के ही परिवार के हैं / अतः तृष्णायतन मोह या मोहायतनभूत तृष्णा दोनों ही अज्ञानरूप हैं। फलितार्थ-इसका फलितार्थ यह है कि इस विषचक्र को वही तोड़ सकता है जो अकिंचन है, वाह्याभ्यन्तरपरिग्रह से रहित है, वितृष्ण है, रागद्वेष-मोह से दूर है / रागद्वेष-मोह के उन्मूलन का प्रथम उपाय : अतिभोजन त्याग 9. रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं। जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तइस्सामि अहाणपुव्वी // [] जो राग, द्वेष और मोह का समूल उन्मूलन करना चाहता है, उसे जिन-जिन उपायों को अपनाना चाहिए उन्हें मैं अनुक्रम से कहूँगा। 1. बहदवत्ति, पत्र 623 का तात्पर्य 2. वही, पत्र 623 मोहयति-मूढतां नयत्यात्मानमिति मोहः-अज्ञानम् / तच्चेह मिथ्यात्वदोषदुष्टं ज्ञानमेव गृह्यते "मोहः प्रायतन-उत्पत्तिस्थानं यस्याः सा मोहायतना तृष्णा / " 3. बृहद्वृत्ति, पत्र 623 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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