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________________ इकतीसवां अध्ययन : चरणविधि] [561 उपसर्ग सहन करना / (9) नवम प्रतिमा-सात अहोरात्र तक चौविहार बेले-बेले पारणा करना / ग्राम के बाहर एकान्त स्थान में दण्डासन, लगुड़ासन या उत्कुटुकासन से ध्यान करना / (10) दसवीं प्रतिमा सप्तरात्रि तक चौविहार तेले-तेले पारणा करना / ग्राम के बाहर गोदुहासन, आम्रकुब्जासन या वीरासन से ध्यान करना, (11) ग्यारहवीं प्रतिमा--एक अहोरात्र (आठ पहर) तक चौबिहार वेले के द्वारा आराधना करना / नगर के बाहर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना / (12) बारहवीं प्रतिमा-यह प्रतिमा केवल एक रात्रि की है / चौविहार तेला करके आराधन करना / ग्राम से बाहर खड़े होकर, मस्तक को थोड़ा-सा झुकाकर, एक पुद्गल पर दृष्टि रख कर निनिमेष नेत्रों से कायोत्सर्ग करना, समभाव से उपसर्ग सहना / इन बारह प्रतिमाओं का यथाशक्ति आचरण करना, इन पर श्रद्धा रखना तथा इनके प्रति अश्रद्धा एवं अतिचार से और आचरण की शक्ति को छिपाने से दूर रहना साधु के लिए अनिवार्य है।' तेरहवां, चौदहवाँ और पन्द्रहवां बोल 12. किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य / जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले // {12] (तेरह) क्रियाओं में, (चौदह प्रकार के) भूतग्नामों (जीवसमूहों) में, तथा (पन्द्रह) परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता / विवेचन-तेरह क्रियास्थान-क्रियाओं के स्थान अर्थात् कारण को क्रियास्थान कहते हैं / वे क्रियाएँ 13 हैं--(१) अर्थक्रिया, (2) अनर्थक्रिया, (3) हिंसाक्रिया, (4) अकस्माक्रिया, (5) दृष्टिविपर्यासक्रिया (6) मृषाक्रिया, (7) अदत्तादानक्रिया, (8) अध्यात्मक्रिया (मन से होने वाली शोकादिक्रिया). (6) मानक्रिया, (10) मित्रक्रिया (प्रियजनों को कठोर दण्ड देना), (11) मायाक्रिया, (12) लोभक्रिया, और (13) ईर्यापथिकी क्रिया (अप्रमत्त संयमी को गमनागमन से लगने वाली क्रिया)। संयमी साधक को इन क्रियाओं से बचना चाहिए; तथा ईपिथिको क्रिया में सहजभाव से प्रवृत्त होना चाहिए / चौदह भूतग्राम--सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञीपंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन सातों के पर्याप्त और अपर्याप्त मिला कर कुल 14 भेद जीवसमूह के होते हैं। साधु को इनको विराधना या किसी प्रकार की पीड़ा देने से बचना और इनकी दया व रक्षा में प्रवृत्त होना चाहिए। __ पन्द्रह परमाधार्मिक--(१) अम्ब, (2) अम्बरीष, (3) श्याम, (4) शबल, (5) रौद्र, (6) उपरौद्र, (7) काल, (8) महाकाल, (6) असिपत्र, (10) धनुः (11) कुम्भ, (12) बालुक, (13) वैतरणी, (14) खरस्वर और (15) महाघोष / ये 15 परमाधार्मिक असुर नारक जीवों को 1. (क) दशाश्रुतस्कन्ध, भगवती सूत्र, हरिभद्रसूरिकृत पंचाशक / समवायांग, सम. 12 2. (क) समवायांग, समवाय 13; (ख) सूत्रकृतांग 2 / 2 3. समवायांग, समदाय 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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