________________ 560] [उत्तराध्ययनसूत्र ___ दशविध श्रमणधर्म-(१) शान्ति, (2) मुक्ति (निर्लोभता), (3) प्रार्जव (सरलता), (4) मार्दव (मृदुता-कोमलता, (5) लाघव (लघुता-अल्प उपकरण), (6) सत्य, (7) संयम (हिंसादि प्राश्रव त्याग), (8) तप, (6) त्याग (सर्वसंगत्याग) और (10) आकिंचन्य-निष्परिग्रहता। इन दश धर्मों में प्रवृत्ति और इनके विपरीत दस पापों से दूर रहना आवश्यक है।' ग्यारहवां-बारहवाँ बोल 11. उवासगाणं पडिमासु भिक्खूणं पडिमासु य / जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले / / [11] जो भिक्षु उपासकों (श्रावकों) की प्रतिमाओं में और भिक्षुओं की प्रतिमानों में सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रहता है। विवेचन-ग्यारह उपासक प्रतिमाएँ-(१) दर्शनप्रतिमा-किसी प्रकार का राजाभियोग आदि प्रागार न रख कर निरतिचार शुद्ध सम्यग्दर्शन का पालन करना / इसको अवधि 1 मास की है। (2) व्रतप्रतिमा--इसमें व्रती श्रावक द्वारा ससम्यक्त्व पांच अणव्रतादि व्रतों की प्रतिज्ञा का पालन करना होता है। इसकी अवधि दो मास की है। (3) सामायिकप्रतिमा-प्रातः सायंकाल निरतिचार सामायिक व्रत की साधना करता है। इससे दृढ़ समभाव उत्पन्न होता है। अवधि तीन मास / (4) पौषधप्रतिमा-अष्टमी आदि पर्व दिनों में चतुर्विध आहार आदि का त्यागरूप परिपूर्ण पौषधव्रत का पालन करना / अवधि-चार मास / (5) नियमप्रतिमा-पूर्वोक्त व्रतों का भलीभाँति पालन करने के साथ-साथ अस्नान, रात्रिभोजन त्याग, कायोत्सर्ग, ब्रह्मचर्यमर्यादा आदि नियम ग्रहण करना / अवधि कम से कम 1-2 दिन, अधिक से अधिक पांच मास / (6) ब्रह्मचर्यप्रतिमा--ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना / अवधि-उत्कृष्ट छह मास की। (7) सचित्तत्यागप्रतिमा-अवधि–उत्कृष्ट 7 मास को। (8) आरम्भत्यागप्रतिमा-स्वयं प्रारम्भ करने का त्याग / अवधि-उत्कृष्ट 8 मास की। (9) प्रेष्यत्यागप्रतिमा-दूसरों से प्रारम्भ कराने का त्याग / अवधि-उत्कृष्ट मास / (10) उद्दिष्टभक्तत्यागप्रतिमा-इसमें शिरोमुण्डन करना होता है। अवधि-उत्कृष्ट 10 मास / (11) श्रमणभूतप्रतिमा-मुनि सदृश वेष तथा बाह्य आचार का पालन / अवधि--उत्कृष्ट 11 मास / इन ग्यारह प्रतिमाओं पर श्रद्धा रखना और अश्रद्धा तथा विपरीत प्ररूपणा से दूर रहना साधु के लिए आवश्यक है। बारह भिक्षुप्रतिमा-(१) प्रथम प्रतिमा---एक दत्ति आहार, एक दत्ति पानी ग्रहण करना। अवधि एक मास / (2) द्वितीय प्रतिमा--दो दत्ति आहार और दो दत्ति पानी / अवधि 1 मास / (3 से 7) वी प्रतिमा-क्रमशः एक-एक दत्ति अाहार और एक-एक दत्ति पानी बढ़ाते जाना। अवधि—प्रत्येक की एक-एक मास की। (8) अष्टम प्रतिमा-एकान्तर चौविहार उपवास करके 7 दिन-रात तक रहना / ग्राम के बाहर उत्तानासन, पाश्र्वासन या निषशासन से ध्यान लगाना / 1. (क) य दशविध श्रमणधर्म नवतत्त्वप्रकरण के अनुसार हैं। (ख) तत्त्वार्थसूत्र में क्रम और नाम इस प्रकार हैं-"उत्तमामामार्दवार्जक्शौचसत्यसंयमतपस्त्यागा किचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।" —प्र. 96 2. (क) दशाश्रुतस्कन्ध टोका (ख) उत्तरा. बृहद्वृत्ति, भावविजयटीका (ग) समवायांग. स. 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org