________________ इकतीसा अध्ययन : चरणविधि] [ 559 होती है / (7) जिसका स्थान में ग्रहण करूँगा, उसी के यहाँ सहजभाव से पहले से रखा हुआ शिलापट्ट या काष्ठपट्ट प्राप्त होगा तो उसका उपयोग करूँगा, अन्यथा उकडू या नषेधिक प्रासन से बैठे-बैठे सारी रात बिता दूंगा। यह प्रतिमा भी जिनकल्पी या अभिग्रहधारी की ही होती है / " सप्त भयस्थान-नाम और स्वरूप-साधुओं को भय से मुक्त और निर्भयतापूर्वक प्रवृत्ति करना आवश्यक है। भय के कारण या आधार (स्थान) सात हैं-(१) इहलोकभय-स्वजातीय प्राणी से डरना, (2) परलोकभय--दूसरी जाति वाले प्राणी से डरना, (3) आदानभय--अपनी वस्तु की रक्षा के लिए चोर आदि से डरना, (4) अकस्मात्भय-अकारण ही स्वयं रात्रि आदि में सशंक होकर डरना, (5) आजोवभय--दुष्काल आदि में जोवननिर्वाह के लिए भोजनादि की अप्राप्ति के या पीड़ा के दुर्विकल्पवश डरना, (6) मरणभय-मृत्यु से डरना और (7) अपयशभय-अपयश (बदनामी) की आशंका से डरना / भयमोहनीय-कर्मोदयवश श्रात्मा का उद्वेग रूप परिणामविशेष भय कहलाता है। भय से चारित्र दूषित होता है। अतः साधु को न तो स्वयं डरना चाहिए और न दूसरों को डराना चाहिए। पाठवा, नौवां एवं दसवाँ बोल 10. मयेसु बम्भगुत्तीसु भिक्खुधम्ममि दसविहे / जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले / / [10] जो भिक्षु (पाठ) मदस्थानों में, (नौ) ब्रह्मचर्य की गुप्तियों में और दस प्रकार के भिक्षधर्म में सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रहता। विवेचन–पाठ मदस्थान-मानमोहनीयकर्म के उदय से आत्मा का उत्कर्ष (अहंकार) रूप परिणाम मद है / उसके 8 भेद हैं-जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद / इन मदों से निवृत्ति और नम्रता-मृदुता में प्रवृत्ति साधु के लिए आवश्यक है / ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियाँ–ब्रह्मचर्य की भलीभांति सुरक्षा के लिए 6 गुप्तियाँ (बाड़) हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं-(१) विविक्तवसतिसेवन, (2) स्त्रीकथापरिहार, (3) निषद्यानुपवेशन, (4) स्त्री-अंगोपांगादर्शन, (5) कुड्यान्तरशब्दश्रवणादिवर्जन, (6) पूर्वभोगाऽस्मरण, (7) प्रणीतभोजनत्याग, (8) अतिमात्रभोजनत्याग और (6) विभूषापरिवर्जन / इनका अर्थ नाम से ही स्पष्ट है। साधु को ब्रह्मचर्यविरोधी वृत्तियों से निवृत्ति और संयमपोषक गुप्तियों में प्रवृत्ति करनी चाहिए। 1. स्थानांग . स्थान 7:545 वृत्ति, पत्र 386-387 2. समवायांग. समवाय 7 वाँ 3. (क) 'मदो नाम मानोदयादात्मन उत्कर्षपरिणामः / ' -अावश्यक. चूणि 4. (क) उत्तरा, प्र. 16 के अनुसार यह वर्णन है (ख) समवायांग, ९वें समवाय में नौ गुप्तियों में कुछ अन्तर है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org