________________ तोसवाँ अध्ययन : तपोमार्गगति] [533 ही किया जाता है, अतएव अन्तिम संस्कार की आवश्यकता होती है, वह निहारिम हैं।' 2. अवमौदर्य (ऊनोदरी) तप : स्वरूप और प्रकार 14. ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं / दव्वओ खेत्त-कालेणं भावेणं पज्जवेहि य / / [14] संक्षेप में अवमौदर्य (ऊनोदरी) तप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पांच प्रकार का कहा गया है। 15. जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे / जहन्नेणेगसिस्थाई एवं दवेण ऊ भवे // [15] जिसका जो (परिपूर्ण) आहार है, उसमें जो जघन्य एक सिक्थ (अन्नकण) कम करता है (या एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करता है), वह द्रव्य से 'ऊनोदरी तप' है / 16. गामे नगरे तह रायहाणि निगमे य आगरे पल्ली। खेटे कब्बड-दोणमुहपट्टण-मडम्ब-संबाहे // 17. आसमपए विहारे सन्निवेसे समाय-घोसे य / थलि-सेणाखन्धारे सत्थे संवट्ट कोट्टे य॥ 1. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 602-603 (ख) मूलाराधना / 2042,43,64, (ग) वही, विजयोदयावृत्ति 8 / 2064 (घ) दुविहं तु भत्तपच्चक्खाण सविचारमथ अविचार / सविचारमणागाढ, मरणे सपरिक्कमस्स हवे / तत्थ अविचारभत्तपाइण्णा मरणम्मि होइ आगाढो / अपरिक्कम्मस्स मुणिणो, कालम्मि प्रसंपुरत्तम्मि / / --मूलाराधना 2065, 7 / 2011,2013,2015,2021,2022 (ङ) पौषपातिक. सूत्र 19 (च) समवायांग, समवाय 17 (छ) सह परिकर्मणा-स्थान-निषदन-त्वग्वर्तनादि विश्रामणादिना च वर्तते यत्तत् सपरिकर्म / अपरिकर्म च तदविपरीतम / यद्वा परिकर्म-संलेखना, सा यत्रास्तीति तत् सपरिकर्म, तदविपरीतं त अपरिक -बृहद्वत्ति, पत्र 602-603 (ज) पादपस्येवोपगमनम् ---अस्पन्दतयाऽवस्थानं पादपोपगमनम् / -औपपातिक वृत्ति, पृ. 71 (झ) पायोवगमणमरणस्स-प्रायोपगमनमरणम् / -मूलाराधना, विजयोदया 8 / 2063 (ञ) विचरणं नानागमनं विचारः, विचारेण वर्तते इति सविचारम् एतदुक्त भवति ।---मूला. विजयोदया 165 .........."प्रविचारं अनियतविहारादिविचारणाविरहात् / / -मूला. दर्पण 7/2015 (ट) यद्वसते रेकदेशे विधीयते तत्ततः शरीरस्य निह रणात्--निस्सारणान्निर्हारिमम् / यत्पुनगिरिकन्द रादौ तदनिह रणादनिभरिमम् / स्थानांगवृत्ति, 2041102 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org