________________ 532 [उत्तराध्ययनसूत्र उपवास करके पुन: क्रमश: एक-एक कम करते-करते एक उपवास पर पा जाना आदि भी इसो तप में आ जाते हैं।' आमरणकालभावी अनशन--आमरणान्त अनशन संथारा कहलाता है। वह सविचार और अविचार भेद से दो प्रकार का है। सविचार-उसे कहते हैं, जिसमें उद्वर्तन-परिवर्तन (करवट बदलने) आदि कायचेष्टाएँ होती हैं / भक्तप्रत्याख्यान और इंगिनीमरण ये दोनों सविचार हैं / भक्तप्रत्याख्यान में अनशनकर्ता स्वयं भी करवट आदि बदल सकता है, दूसरों से भी इस प्रकार की सेवा ले सकता है / यह अनशन दूसरे साधुओं के साथ रहते हुए भी हो सकता है / यह इच्छानुसार त्रिविधाहार या चतुर्विधाहार के प्रत्याख्यान से किया जा सकता है / इंगिनीमरण में अनशनकर्ता एकान्त में एकाकी रहता है / यथाशक्ति स्वयं तो करवट आदि की क्रियाएँ कर सकता है, लेकिन इसके लिए दूसरों से सेवा नहीं ले सकता। अविचार-वह है, जिसमें करवट आदि की कायचेष्टाएँ न हों / यह पादपोपगमन होता है / 'मूलाराधना' के अनुसार जिसको मृत्यु अनागाढ (तात्कालिक होने वाली नहीं) है, ऐसे पराक्रमयुक्त साधक का भक्तप्रत्याख्यान सविचार कहलाता है और मृत्यु को प्राकस्मिक (आगाढ) सम्भावना होने पर जो भक्तप्रत्याख्यान किया जाता है, वह अविचार कहलाता है। इसके तीन भेद हैं-निरुद्ध (रोगातंक से पीड़ित होने पर),निरुद्धतर (मृत्यु का तात्कालिक कारण उपस्थित होने पर) और परमनिरुद्ध (सर्पदंश आदि कारणों से बाणी रुक जाने पर)। दिगम्बर परम्परा में इसके लिए 'प्रायोपगमन' शब्द मिलता है। वक्ष कट कर जिस अवस्था में गिर जाता है. उसी स्थिति में पड़ा रहता है. उसी प्रकार गिरिकन्दरा ग्रादि शुन्य स्थानों में किया जाने वाला पादपोपगमन अनशन में भी जिस ग्रासन का उपयोग किया जाता है, अन्त तक उसी प्रासन में स्थिर रहा जाता है। प्रासन, करवट आदि बदलने की कोई चेष्टा नहीं की जाती। पादपोपगमन अनशनकर्ता अपने शरीर की शुश्रूषा न तो स्वयं करता है और न ही किसी दूसरे से करवाता है / प्रकारान्तर से मरणकालीन अनशन के दो प्रकार हैं---सपरिकर्म (बैठना, उठना, करवट बदलना आदि परिकर्म से सहित) और अपरिकर्म / भक्तप्रत्याख्यान और इंगितीमरण 'सपरिकर्म' होते हैं और पादपोपगमन नियमत: 'अपरिकर्म' होता है / अथवा संलेखना के परिकर्म से सहित और उससे रहित को भी 'सपरिकर्म' और 'अपरिकर्म' कहा जाता है। संल्लेखना का अर्थ है-विधिवत् क्रमशः अनशनादि तप करते हुए शरीर, कषायों, इच्छानों एवं विकारों को क्रमशः क्षीण करना, अन्तिम मरणकालीन अनशनको पहल सहा तयारी रखना। निहारिम-अनिर्हारिम अनशन-अन्य अपेक्षा से भी अनशन के दो प्रकार हैं-निर्हारिम और अनिभरिम / वस्ती से बाहर पर्वत आदि पर जाकर जो अन्तिम समाधि-मरण के लिए अनशन किया जाता है और जिसमें अन्तिम संस्कार की अपेक्षा नहीं रहती वह अनिर्हारिम है और जो.वस्ती में 1. (क) उत्तरा. बृहद्वत्ति, पत्र 601 (ख) औपपातिक सू. 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org