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________________ तीसवाँ अध्ययन : तपोमार्ग गति [531 प्रस्तुत गाथा (सं. 6) में इत्वरिक-अनशन छह प्रकार का बतलाया गया है-- (1) श्रेणितप-उपवास से लेकर 6 महीने तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, वह श्रेणितप है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं। यथा-उपवास, बेला, यह दो पदों का श्रेणितप है। उपवास, वेला, तेला, चौला-यह चार पदों का श्रेणितप है। (२)प्रतरतप–एक श्रेणितप को जितने क्रमों--प्रकारों से किया जा सकता है, उन सब क्रमों को मिलाने से प्रतरतप होता है, उदाहरणार्थ--१, 2, 3, 4 संख्यक उपवासों से चार प्रकार बनते हैं / स्थापना इस प्रकार है क्रम उपवास बेला तेला चौला बेला तेला चौला उपवास तेला चौला उपवास बेला चौला उपवास बेला तेला यह प्रतरतप है। इसमें कुल पदों की संख्या चार को चार से गुणा करने पर 444 = 16 उपलब्ध होती है। यह पायाम और विस्तार दोनों में समान है। इस तरह यह तप श्रेणिपदों को गुणा करने से बनता है। (3) घनतप-जितने पदों की श्रेणि हो, प्रतरतप को उतने पदों से गुणित करने पर घनतप बनता है। जैसे कि ऊपर चार पदों को श्रेणि है। उपर्युक्त षोडशवदात्मक प्रतरतप को चतुष्टयात्मक श्रेणि से गुणा करने पर, अर्थात्-प्रतरतप को चार बार करने पर घनतप होता है। इस प्रकार घनतए के 64 भेद होते हैं। (4) वर्गतप–धन को घन से गुणा करने पर वर्ग वर्गतप बनता है / अर्थात्-घनता को 64 बार करने से वर्गतप बनता है / इस प्रकार वर्गतप के 644 64 = 4066 पद होते हैं / (5) वर्ग-वर्गतप-वर्ग को वर्ग से गुणित करने पर वर्गतप होता है। अर्थात्-वर्गतप को 4066 बार करने से 1,67,77,216 पद होते हैं। शब्दों में इस प्रकार है-एक करोड़ सड़मठ लाख, सत्तहत्तर हजार और दो सौ सोलह पद / ये पांचों तप श्रेणितप की भावना से सम्बन्धित हैं। प्रकीर्णतप-यह तप विविध प्रकीर्णक तप से सम्बन्धित है। यह तप श्रेणि आदि निश्चित पदों की रचना किये बिना ही अपनी शक्ति और इच्छा के अनुसार किया जाता है। नमस्कारिका (नौकारसी) से लेकर यवमध्य, चन्द्रमध्य, चन्द्रप्रतिमा आदि प्रकीर्णतप हैं। इसमें एक से लेकर 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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