________________ तीसवां अध्ययन : तपोमार्गगति] [529 बाह्यतप : प्रकार, अनशन के भेद-प्रभेद 8. अणसणमणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। __ कायकिलेसो संलोणया य बज्झो तवो होइ // [8] अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग, कायक्लेश और (प्रति) संलीनता, यह (छह) बाह्य तप हैं। 9. इत्तिरिया मरणकाले दुविहा प्रणसणा भवे / ___ इत्तिरिया सावकंखा निरवकंखा बिइज्जिया // [6] अनशन तप के दो प्रकार हैं-इत्वरिक और आमरणकालभावी / इत्वरिक (अनशन) सावकांक्ष (निर्धारित उपवासादि अनशन के बाद पुनः भोजन की आकांक्षा वाला) होता है। अामरणकालभावी निरवकांक्ष (भोजन की आकांक्षा से सर्वथा रहित) होता है। 10. जो सो इत्तरियतवो सो समासेण छविहो। सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य / 11. तत्तो य वम्गवग्गो उ पंचमी छटुओ पइण्णतवो। मणइच्छिय-चित्तत्थो नायब्वो होइ इत्तरिओ। [10-11] इत्वरिक तप संक्षेप से छह प्रकार का है-(१) श्रेणितप, (2) प्रतरतप, (3) धनतप तथा (4) वर्गतप पाँचवाँ वर्ग वर्गतप और छठा प्रकीर्णतप / इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार का फल देने वाला इत्वरिक अनशन तप जानना चाहिए / 12. जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया / सवियार-अवियारा कायचिट्ठ पई भवे // [12] कायचेष्टा के आधार पर आमरणकालभावी जो अनशन है, वह दो प्रकार का कहा गया है—सविचार (करवट बदलने आदि चेष्टाओं से युक्त) और अविचार (उक्त चेष्टानों से रहित)। 13. अहबा सपरिकम्मा अपरिकम्मा य प्राहिया / नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि / / [13] अथवा अामरणाकलभावी अनशन के सपरिकर्म और अपरिकर्म, ये दो भेद हैं। अविचार अनशन के निर्हारी और अनिर्हारी, ये दो भेद भी होते हैं। दोनों में ग्राहार का त्याग होता है। विवेचनबाह्य तप से परम लाभ-यदि पूर्वकाल में(बाह्य)तप नहीं किया हो तो मरणकाल में समाधि चाहता हुआ भी साधक परीषहों को सहन नहीं कर सकता / विषयसुखों में आसक्त हो जाता है / बाह्य तप के आचरण से मन दुष्कर्म में प्रवृत्त नहीं होता, प्रायश्चित्तादि तपों में श्रद्धा होती है / बाह्य तप से पूर्व स्वीकृत व्रतादि का रक्षण होता है। बाह्य तप से सम्पूर्ण सुखस्वभाव का त्याग होता है, शरीरसंलेखना के उपाय की प्राप्ति होती है और आत्मा संसारभीरुता नामक गुण में स्थिर होता है।' - 1. भगवतो आराधना मूल 91, 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org