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________________ उल्लेख है। यद्यपि मूलपाठ में उनके प्रत्येकबुद्ध होने का उल्लेख नहीं है। यह उल्लेख सर्वप्रथम उत्तराध्ययन नियुक्ति में हुआ है / उसके पश्चात् टीका-साहित्य में / उदायन : एक परिचय 'उदायन' सिन्धु सौवीर जनपद के राजा थे। इनके अधीन सोलह जनपद, वीतभय आदि तीन मी तिरसठ नगर और महासेन आदि दश मुकूटधारी राजा थे। वैशाली के गणतंत्र के राजा चेटक की पुत्री उदायम की पटरानी थी। भगवती 180 सूत्र में उदायन का प्रसंग प्राप्त है। उदायन का पुत्र अभीचकुमार निम्रन्थ धर्म का उपासक था / राजा उदायन ने अपना राज्य अभीचकूमार को न देकर अपने भानजे केशी को दिया / 'केशी' को राज्य देने का कारण यही था कि वह राज्य में प्रासक्त होकर कहीं नरक न जाए। किन्तु राज्य न देने के कारण अभीचकुमार के मन में द्रोह उत्पन्न हुा / उदायन को, उसकी दिवंगत धर्मपत्नी जो देवी बनी थी वह स्वर्ग से आकर धर्म की प्रेरणा प्रदान करती है। राजा उदायन को दीक्षा प्रदान करने के लिए श्रमण भगवान महावीर मगध से विहार कर सिन्धू सौवीर पधारते हैं। उदायन मुनि उत्कृष्ट तप का अनुष्ठान प्रारम्भ करते हैं / स्वाध्याय और ध्यान में अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर देते हैं। दीर्घ तपस्या तथा नरम-नीरम आहार से उनका शरीर अत्यन्त कृश हो चका था, शारीरिक बल क्षीण होने से रुग्ण रहने लगे। जब रोग ने उग्र रूप धारण किया तो म्वाध्याय, ध्यान ग्रादि में विघ्न उपस्थित हुना। वैद्यों ने दही के प्रयोग का परामर्श दिया। राजपि त देखा--बीतभय में गोकुल की सुलभता है। उन्होंने वहाँ से विहार किया और वीतमय पधारे। गजा केशी को मंत्रियों ने गजर्षि के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि राजर्षि गज्य छीनने के लिए आये हैं। केशी ने राजर्षि के शहर में पाने का निषेध कर दिया। एक कुम्भकार के घर में उन्होंने विश्राम लिया। राजा केशी ने उन्हें मरवाने के लिए आहार में विष मिलवा दिया। पर रानी प्रभावती, जो देवी बनी थी, वह विप का प्रभाव क्षीण करती रही। एक बार देवी की अनुपस्थिति में विषमिश्रित पाहार राजर्षि के पात्र में आ गया। व उसे शान्त भाव से खा गये। शरीर में विष व्याप्त हो गया। उन्होने अनशन किया और केवलज्ञान की उन्हें प्राप्ति हई / देवी के प्रकोप से वीतभय नगर धलिमात हो गया।" बौद्ध साहित्य में भी राजा उदायन का वर्णन मिलता है। अवदान कल्पलता के अनुसार उनका नाम उद्रायण था / 82 दिव्यावदान के अनुसार रुद्रायण था / 83 आवश्यकणि में उदायन का नाम उद्रायण भी मिलता है। '84 वह सिन्धु-सीवीर देश का स्वामी था। उसकी राजधानी रोरूक थी। दिवंगत पत्नी ही उसे धर्ममार्ग के लिए उत्प्रेरित करती है। उद्रायण सिन्धु-सौवीर से बलकर मगध पहुँचता है / बुद्ध उसे दीक्षा प्रदान करते हैं / दीक्षित होने के बाद वे अपनी राजधानी में जाते हैं और दुष्ट अमात्यों की प्रेरणा से उनका वध होता है। बौद्ध दृष्टि से रुद्रायण ने अपना राज्य अपने पुत्र शिखण्डी को सौंपा था। अंत में देवी के प्रकोप के कारण रोरूक धलिमात् हो जाता है / विज्ञों का यह मन्तब्ध है कि प्रस्तुत रुद्रावण प्रकरण बौद्ध साहित्य में बाद में पाया है क्योंकि हीनयान परम्परा के ग्रन्थों में यह वर्णन प्राप्त नहीं है / महायानी परम्परा के त्रिपिटक, जो संस्कृत में हैं, 180, भगवतीसूत्र शतक-१३, उद्देशक 6 181. उत्तराध्ययनसूत्र-भावगणि विरचित वत्ति, अध्य० 18, पत्र 380-388 182. अवदान कल्पलता-अवदान 40, क्षेमेन्द्र सं. शरत्चन्द्रदास और पं. हरिमोहन विद्याभूषण 153. दिव्यावदान—रुद्रायणावदान 37. सं. डॉ. पी. एल. वैद्य, प्रका. मिथिला विद्यापीठ-दरभंगा 184. उद्दायण राया, तावसभत्तो --प्रावश्यक चणि पूर्वार्द्ध पत्र 399 [ 63 ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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