SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनमें यह वर्णन सम्प्राप्त है / डॉ. पी. एल. वैद्य का अभिमत है कि दिव्यावदान की रचना ई. मन 200 से 350 तक के मध्य में हुई है। इसीलिए जैन परम्परा के उदायन को ही बौद्ध परम्परा में रुद्रायणावदान के रूप में परिवर्तित किया है। दोनों ही परम्पराओं में एक हो ब्यक्ति दीक्षित कैसे हो सकता है ? बौद्ध परम्परा की अपेक्षा जैन परम्परा का 'उदायण प्रकरण' अधिक विश्वम्न है। प्रस्तुत अध्ययन में उदायन का केवल नाम निर्देश ही हया है। हमने दोनों ही परम्परागों के आधार से संक्षेप में उल्लेख किया है। काशीराज का नाम नन्दन था और वे सातवें बलदेव थे / वे वाराणमी के राजा अग्निणित के पुत्र थे। इनकी माता का नाम जयन्ती और लघु माता का नाम दत्त था / 'विजय' द्वारकावती नगरी के राजा ब्रह्मराज के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभद्रा था तथा लघुभ्राता का नाम द्विपृष्ठ था। नेमिचन्द्र ने उत्तराध्ययनवृत्ति में लिखा है. -ग्रावश्यकचणि में 'नन्दन' और 'विजय' इनका उल्लेख है। हम उसी के अनुसार उनका यहाँ पर वर्णन दे रहे हैं। यदि यहाँ पर वे दोनों व्यक्ति दमरे हों तो आगम-साहित्य के मर्मज्ञ उनकी अन्य व्याख्या कर सकते हैं / 85 इससे यह स्पष्ट है कि नेमिचन्द्र को इस सम्बन्ध में अनिश्चितता थी। शान्त्याचार्य ने अपनी टीका में इस सम्बन्ध में कोई चिन्तन प्रस्तुत नहीं किया है। काणीराज और विजय के पूर्व उदायन राजा का उल्लेख हुआ है, जो श्रमण भगवान महावीर के समय में हर थे। उनके बाद बलदेवों का उल्लेख संगत प्रतीत नहीं होता। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन में पहले तीर्थंकर, चक्रवर्ती, और राजारों के नाम क्रमश: पाये हैं, इसीलिए प्रकरण की दृष्टि मे महावीर युग के ही ये दोनों व्यक्ति होने चाहिए / स्थानांग सूत्र में भगवान महावीर के पास पाठ राजानों ने दीक्षा ग्रहण की, उसमें काणीराज शंख का भी नाम है / गम्भव है, काशीराज से शंख राजा का यहाँ अभिप्राय हो / भगवान महावीर के पास प्रत्रज्या ग्रहण करने वाले राजारों में विजय नाम के राजा का उल्लेख नहीं है। पोलासपुर में विजय नाम के राजा थे। उनके पुत्र अतिमुक्त कुमार ने भगवान महावीर के पास दीक्षा ली परन्तु उनके पिता ने भी दीक्षा नी, ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं है।१८. विजय नाम का एक अन्य गजा भी भगवान् महावीर के समय हना था, जो नगमात्र नगर का था। उसकी रानी का नाम मगा था।८६ वह दोभित हया हो, ऐसा भी उल्लेख नहीं मिलता / इसलिए निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता / विजों के लिए अन्वेषणीय है। महावल राजा का भी नाम इस अध्ययन में पाया है / टीकाकार नेमिचन्द्र ने महावल की कथा विस्तार म उदकित की है।१८६ और उसका मुल स्रोत उन्होंने भगवनी बताया है।'' महावल हस्तिनापुर के राजा बल के पुत्र थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। वे तीर्थकर विमलनाथ की परम्परा के प्राचार्य धर्मवोष के पास दीक्षित हुए थे / बारह वर्ष श्रमण-पर्याय में रह कर वे ब्रह्मदेवलोक में उत्पन्न हुए। वहां से वाणिज्य ग्राम में श्रेष्ठी के पुत्र सुदर्शन बने। इन्होंने भगवान महावीर के पाम प्रवज्या ग्रहण की। यह कथा देने के पश्चात 185. उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति, पत्र-२५६ 186. स्थानांग सूत्र, ठाणा 8, सुत्र 81 17. अन्तगडदशा सूत्र, वर्ग 188. विपाकसूत्र, श्रु तस्कन्ध 1, अध्ययन 1 189. व्याख्याप्रज्ञप्ति 190. उत्तराध्ययन, मुख बोधावृत्ति, पत्र 259 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy