________________ लड़खड़ा रहा है। उसका मन वैराग्य से भर गया। संमार को परिवर्तनशीलता का भान होने से वह प्रत्येकबुद्ध हुआ। बौद्ध साहित्य 175 में भी कलिंग राष्ट्र के दन्तपुर नगर का राजा करकण्ड था। एक दिन उसने फलों से लदे हुए पान वक्ष को देखा। उसने एक ग्राम तोड़ा। राजा के साथ जो अन्य व्यक्ति थे उन सभी ने आमों को एक-एक कर तोड़ लिया। वक्ष फलहीन हो गया। लौटते समय राजा ने उसे देखा। उसकी शोभा नष्ट हो चुकी थी। राजा सोचने लगा--वक्ष फलसहित था, तब तक उसे भय था। धनवान को मर्वत्र भय होता है। अकिंचन को कहीं भी भय नहीं। मुझे भी फलरहित वक्ष की तरह होना चाहिए। वह विचारों की तीव्रता से प्रत्येकबुद्ध हो गया। द्विमुख पांचाल के राजा थे। ये इन्द्रध्वज को देखकर प्रतिबोधित हुए। बौद्ध माहित्य में भी दुमुख राजा का वर्णन है / 17 वे उत्तरपांचाल राष्ट्र में ऋम्पिल नगर के अधिपति थे / वे भोजन से निवस होकर गजाङ्गण की श्री को निहार रहे थे / उसी समय ग्वालों ने ब्रज का द्वार खोल दिया / दो सांडों ने कामुकता के अधीन होकर एक गाय का पीछा किया। दोनों परस्पर लड़ने लगे। एक के मींग से दूसरे सांड की ग्रांतें बाहर निकल पाई और वह मर गया। राजा चिन्तन करने लगा-सभी प्राणी विकारों के वशीभूत होकर कष्ट प्राप्त करते हैं। ऐसा चिन्तन करते हुए वह प्रत्येकबोधि को प्राप्त हो गया। नग्गति गांधार का राजा था। वह मंजरी-विहीन पाम्रवृक्ष को निहारकर प्रत्येकबुद्ध हुा / वौद्ध साहित्य में भी 'नग्गजी' नाम के राजा का वर्णन है। वह गांधार राष्ट्र के तक्षशिला का अधिपति था। उसकी एक स्त्री थी / वह एक हाथ में एक कंगन पहन कर सुगन्धित द्रव्य को पीस रही थी। राजा ने देखा-एक कंगन के कारण न परस्पर रगड़ होती है और न ध्वनि ही होती है। उस स्त्री ने कुछ समय के बाद दूसरे हाथ में पीसना प्रारम्भ किया / उस हाथ में दो कंगन थे। परस्पर घर्षण से शब्द होने लगा। राजा सोचने लगा—दो होने से रगड़ होती है और साथ ही ध्वनि भी। मैं भी अकेला हो जाऊँ जिमसे संघर्ष नही होगा और वह प्रत्येकबुद्ध हो गया। उत्तराध्ययन में जिन चार प्रत्येकबद्धों का उल्लेख है, वैसा ही उल्लेख बौद्ध साहित्य में भी हना है किन्तु वैराग्य के निमित्तों में व्यत्यय है। जैन कथा में वैराग्य का जो निमित्त नग्गती और नमि का है, वह बौद्ध कथानों में करकष्ट और नग्गजी का है। उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति में तथा अन्य ग्रन्थों में इन चार प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ बहुत विस्तार के साथ पाई हैं। उनमें अनेक ऐतिहासिक और मांस्कृतिक तथ्यों का संकलन है, जबकि बौद्ध कथाओं में केवल प्रतिवुद्ध होने के निमित्त का ही वर्णन है। विण्टरनीज का अभिमत है—जैन और वौद्ध साहित्य में जो प्रत्येकबुद्धों को कथाएँ पाई हैं, वे प्राचीन भारत के धमण-साहित्य की निधि हैं / '78 प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख वैदिक परम्परा के साहित्य में नहीं हया है। महाभारत'७६ में जनक के रूप में जिस व्यक्ति का उल्लेख हुआ है, उसका उत्तराध्ययन में नमि के रूप में 175. कुम्भकार जातक (संख्या 408) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ 37 176. कुम्भकारजातक (संख्या 408) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ 39-40 157. कुम्भकारजातक (संख्या 408) जातक, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ 39 178. The Jainas in the History of Indian Literature, P. 8. 179. महाभारत, शान्तिपूर्ण, अध्याय-१७८, 218, 276. [ 62 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org