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________________ 518] [उत्तराध्ययनसूत्र का निग्रह करता है / (फिर वह) तत्प्रत्ययिक (-शब्दनिमित्तक) कर्म नहीं बांधता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। 64. चक्खिन्दियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? चक्खिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु रुवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्ध च निज्जरेइ / [64 प्र.] भंते ! चक्षुरिन्द्रिय के निग्रह से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] चक्षुरिन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। (इससे फिर) रूपनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। 65. धाणिन्दियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? घाणिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुत्वबद्ध च निज्जरेइ। [65 प्र.] भन्ते ! घ्राणेन्द्रिय के निग्रह से जीव क्या प्राप्त करता है ? (उ.] घ्राणेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। (इससे फिर) राग-द्वेषनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। 66. जिभिन्दियनिग्गहेणं भंते ! जोवे कि जणयइ ? जिनिभन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ / [66 प्र.] भन्ते ! जिह्वन्द्रिय के निग्रह से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] जिह्वन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है / (इससे फिर) तन्निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता / पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। 67. फासिन्दियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? फासिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुत्वबद्ध च निज्जरेइ / [67 प्र.] स्पर्शेन्द्रियनिग्रह से भगवन् ! जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] स्पर्शेन्द्रिय-निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है / (इससे फिर) राग-द्वेषनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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