SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 512] [उत्तराध्ययनसूत्र मदुता की उपलब्धियाँ तीन–(१) अनुद्धतता, (2) द्रव्य से कोमलता और भाव से नम्रता और (3) अष्ट मदस्थानों का अभाव / क्षान्ति आदि क्रोधादि पर विजय के परिणाम हैं / जाति, कुल, बल, रूप, तप, लाभ, श्रुत और ऐश्वर्य का मद, इन 8 मद के हेतुओं को अष्ट मदस्थान कहते हैं / ' 50 से 52 भाव-करण-योग-सत्य का परिणाम 51. भावसच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? भावसच्चेणं भावविसोहि जणयइ। भावविसोहीए वट्टमाणे जोवे परहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराणयाए अब्भुटुइ / अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोग-धम्मस्स आराहए हवइ / [51 प्र.] भंते ! भावसत्य (अन्तरात्मा की सचाई) से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] भावसत्य से जीव भावविशुद्धि प्राप्त करता है। भावविशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म की आराधना के लिए उद्यत होता है / अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत व्यक्ति परलोक-धर्म का पाराधक होता है। 52. करणसच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? करणसच्चेणं करणत्ति जणयइ / करणसच्चे वट्टमाणे जोवे जहावाई तहाकारो यावि भवइ / [52 प्र.] भन्ते ! करणसत्य (कार्य की सचाई) से जीव क्या प्राप्त करता है ? उ.] करणसत्य से जीव करणशक्ति (प्राप्त कार्य को सम्यक्तया सम्पन्न करने की क्षमता) प्राप्त कर लेता है। करणसत्य में वर्तमान जीव 'यथावादी तथाकारी' (जैसा कहता है, वैसा करने वाला) होता है। 53. जोगसच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ। [53 प्र.] भन्ते ! योगसत्य से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] योगसत्य से (मन, वचन और काय के प्रयत्नों को सचाई से) जोव योगों को विशुद्ध कर लेता है। विवेचन-सत्य को त्रिपुटी-सत्य के अनेक पहलू हैं / पूर्ण सत्य को प्राप्त करना सामान्य साधक के लिए अतीव दुःशक्य है। परन्तु सत्यार्थी और मुमुक्षु साधक के लिए सत्य की पूर्णता तक पहुँचने हेतु प्रस्तुत तीन सूत्रों (51-52-53) में प्रतिपादित त्रिपुटी की आराधना आवश्यक है। क्योंकि सत्य का प्रवाह तीन धाराओं से बहता है-भावों (यात्मभावों) की सत्यता से, करण-सत्यता से और योग-सत्यता से / इन तीनों का मुख्य परिणाम तीनों की विशुद्धि और क्षमता में वद्धि है। 1. (क) तुलना-सूत्र 67 से 70, (ख) स्थानांग स्था. 4 / 1 / 254 2. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर का सारांश) भा. 2, पत्र 254-255 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy