________________ उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम] [511 [47 प्र.] भंते ! क्षान्ति से जीव को क्या उपलब्धि होती है ? [उ.] शान्ति से जीव परीषहों पर विजय पाता है / 48. मुत्तीए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? मुत्तीए णं अकिचणं जणयइ / अकिंचणे य जीवे अस्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ / [48 प्र.] भंते ! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव को क्या लाभ होता है ? [उ.] मुक्ति से जीव अकिंचनता प्राप्त करता है। अकिंचन जीव अर्थलोलुपी जनों द्वारा अप्रार्थनीय हो जाता है। 49. अज्जवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? अज्जवयाए णं काउज्जुययं, भावुज्जुययं, भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ / अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ / [46 प्र.] भंते ! ऋजुता (सरलता) से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] ऋजुता से जीव काया की सरलता, भावों (मन) को सरलता, भाषा की सरलता और अविसंवादता को प्राप्त करता है / अविसंवाद-सम्पन्नता से जीव (शुद्ध), धर्म का आराधक होता है / 50. मद्दवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? मद्दवयाए णं अणुस्सियत्तं जणयइ / अणुस्सियत्ते णं जोवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्ठावेद। [50 प्र.] भंते ! मृदुता से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को प्राप्त होता है, अनुद्धत जीव मृदु-मार्दव भाव से सम्पन्न होकर आठ मदस्थानों को नष्ट कर देता है। विवेचन--क्षान्ति आदि चार : स्वरूप और उपलब्धि---क्षान्ति के दो अर्थ हैं-क्षमा और सहिष्णुता / क्षमा का लक्षण है-प्रतीकार करने को शक्ति होने पर भी प्रतीकार न करके अपकार सह लेना / सहिष्णुता का अर्थ है--तितिक्षा / दोनों प्रकार की क्षमता बढ़ जाने पर व्यक्ति परीषहविजयी बन जाता है / ' मुक्ति अर्थात् निर्लोभ के दो परिणाम हैं-अकिंचनता अर्थात्-निष्परिग्रहत्व, एवं चोर आदि अर्थलोभी लोगों द्वारा अप्रार्थनीयता / ' ऋजता के चार परिणाम--सरलता से काया (कायचेष्टा), भाषा और भावों में सरलता तथा अविसंवादन अर्थात् दूसरों को बंचन न करना / ऐसा होने पर ही जीव सद्धर्माराधक होता है। 1. उत्तरा. प्रियशिनीटीका, भा.४ 2. बृहद्वृत्ति, पत्र 590, मुक्ति : निर्लोभता / 3. तुलना-चउबिहे सच्चे प. तं.--काउज्जूयया, भाउजूयया, भासुज्जुयया अविसंबायणाजोगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org