________________ उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम] (505 [उ.) कषाय के प्रत्याख्यान से वीतरागभाव प्राप्त होता है। वोतरागभाव को प्राप्त जीव सुख-दुःख में समभावी हो जाता है / 38. जोग-पच्चक्खाणणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ? जोग-पच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी गं जोवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धच निज्जरेइ। [38 प्र.] भंते ! योग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? [उ.] योग (मन-वचन-काया से सम्बन्धित व्यापारों) के प्रत्याख्यान से जीव अयोगत्व को प्राप्त होता है / अयोगी जीव नए कर्मों का बन्ध नहीं करता। पूर्वबद्ध कर्मों को निर्जरा करता है। 39. सरीर-पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? सरीर-पच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणतणं निम्बतेइ / सिद्धाइसयगुणसंपन्न य णं जोवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ / [36 प्र.] भंते ! शरीर के प्रत्याख्यान से जीव को क्या लाभ होता है ? [उ.] शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के अतिशय गुणों का सम्पादन कर लेता है / सिद्धों के अतिशय गुणों से सम्पन्न जीव लोक के अग्रभाग में पहुँच कर परमसुखी हो जाता है / 40. सहाय-पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? सहाय-पच्चक्खाणेणं एगीमावं जणयइ / एमीभावभूए वि य णं जोवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे, अप्पझझे, अप्पकलहे अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए यावि भवई। [40 प्र.] भंते ! सहाय के प्रत्याख्यान से जीव को क्या लाभ होता है ? [उ.] सहाय (सहायक) के प्रत्याख्यान से जीव एकोभाव को प्राप्त होता है / एकोभाव को प्राप्त साधक एकाग्रता की भावना करता हुआ विग्रहकारी शब्द, वाक्कलह (झझट), कलह (झगड़ा-टेंटा), कषाय तथा तू-तू-मैं-मैं आदि से सहज ही मुक्त हो जाता है / संयम और संवर में आगे बढ़ा हुआ वह समाधि-सम्पन्न हो जाता है। 41. भत्त-पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? भत्त-पच्चक्खाणेणं अणेगाइं भवसयाई निम्मइ / [41 प्र.] भन्ते ! भक्त-प्रत्याख्यान (आहारत्याग) से जीव को क्या प्राप्त होता है ? [उ.] भक्त-प्रत्याख्यान से जीव अनेक सैकड़ों भवों (जन्म-मरणों) का निरोध कर लेता है। 42. सम्भाव-पच्चक्खाणणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? सम्भाव-पच्चक्खाणेणं अनियट्टि जणयइ / अनियट्टिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ / तं जहा-वेयणिज्जं, प्राउयं, नाम, गोयं / तओ पच्छा सिज्मइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिवाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org