________________ उनतीसवां अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम] [501 श्रुताराधना का फल-एक श्राचार्य ने कहा है-ज्यों-ज्यों श्रुत (शास्त्र) में गहरा उतरता जाता है, त्यों-त्यों अतिशय प्रशम-रस में सराबोर होकर अपूर्व प्रानन्द (पालाद) प्राप्त करता है, संवेगभाव नयी-नयी श्रद्धा से युक्त होता जाता है।' 25 एकाग्र मन की उपलब्धि 26. एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? एगग्गमणसंनिवेसणायाए णं चित्तनिरोहं करेइ / [26 प्र.] भन्ते ! मन को एकाग्रता में स्थापित करने (सन्निवेशन) से जीव क्या उपलब्ध करता है ? [उ.] मन को एकाग्रता में स्थापित करने से चित्त (वृत्ति) का निरोध होता है। विवेचन-मन की एकाग्रता : आशय -(1) मन को एकाग्र--अर्थात् एक अवलम्बन में स्थिर करना / (2) एक ही पुद्गल में दृष्टि को निविष्ट (स्थिर) करना / (3) ध्येय विषयक ज्ञान की एकतानता भी एकाग्रता है। चित्तनिरोध-चित्त की विकल्पशून्यता 13 26 से 28 संयम, तप एवं व्यवदान के फल २७-संजमेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? संजमेणं अणण्यत्तं जणयइ / (27 प्र.] भन्ते ! संयम से जीव क्या प्राप्त करता है ? [उ.] संयम से जीव अनाश्रवत्व (-पाश्रवनिरोध) प्राप्त करता है। २८-तवेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? तवेणं वोदाणं जणयइ // [28 प्र.] तप से जीव को क्या प्राप्त होता है ? [उ.] तप से जीव (पूर्वसंचित कर्मों का क्षय करके) व्यवदान-विशुद्धि प्राप्त करता है। २९--वोदाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ / अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिवाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ // [26 प्र.] भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या उपलब्धि होती है ? (उ.] व्यवदान से जीव प्रक्रिया को प्राप्त करता है। अक्रियता सम्पन्न होने के पश्चात् जीव 1. "जह जह सुबमोगाहइ, अइसयरसपसरसंजयमपूब्वे / तह तह पल्हा इ मुणी, नव-नव संवेगसद्धस्स / / " 2. (क) उत्तरा. प्रियशिनीटीका भा. 4, 5. 279 (ख) "एकपोग्गलनिविदिदित्ति / " —अन्तकृत्. गजसुकुमालवर्णन / 3. उत्तरज्झयणाणि (टिप्पण, मुनि नथमलजी) पृ. 237 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org