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________________ 472] [उत्तराध्ययनसूत्र उसमें गुण है / जो-जो गुणवान् होता है, वह-वह द्रव्य होता है, जैसे-प्रकाश / जैसे प्रकाश का भास्वर रूप और उष्ण स्पर्श प्रसिद्ध है, वैसे ही अन्धकार का कृष्ण रूप और शीत स्पर्श अनुभवसिद्ध है / निष्कर्ष यह है कि अन्धकार (अशुभ) पुद्गल का कार्य लक्षण है, इसलिए वह पौद्गलिक है। युद्गल का एक पर्याय है / ' छाया : स्वरूप और प्रकार-छाया भी पौद्गलक है---पुद्गल का एक पर्याय है / प्रत्येक स्थूल पौद्गलिक पदार्थ चय-उपचय धर्म वाला है / पुद्गलरूप पदार्थ का चय-उपचय होने के साथसाथ उसमें से तदाकार किरणे निकलती रहती हैं / वे ही किरणे योग्य निमित्त मिलने पर प्रतिविम्बित होता हैं, उसे हो 'छाया' कहा जाता है। वह दो प्रकार की है -तद्वर्णादिविकार छाया (दर्पण आदि स्वच्छ पदार्थों में ज्यों की त्यों दिखाई देने वाली प्राकृति) और प्रतिबिम्ब छाया (अन्य पदार्थों पर अस्पष्ट प्रतिबिम्ब मात्र पड़ना)। अतएव छाया भावरूप है, अभावरूप नहीं / नौ तत्त्व और सम्यक्त्व का लक्षण 14. जीवाजीवा य बन्धो य पुण्णं पावासवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो सन्तेए तहिया नव // [14] जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, प्राश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये नौ तत्त्व हैं / 15. तहियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसणं / भावेणं सद्दहंतज्स सम्मत्तं तं वियाहियं / [15] इन तथ्यस्वरूप भावों के सद्भाव (अस्तित्व) के निरूपण में जो भावपूर्वक श्रद्धा है, उसे सम्यक्त्व कहते हैं। विवेचन--तत्त्व का स्वरूप--यथावस्थित वस्तुस्वरूप अथवा यथार्थरूप / इसे वर्तमान भाषा में तथ्य या सत्य कह सकते हैं। इन सत्यों (या तत्त्वों) के नौ प्रकार हैं, प्रात्मा के हित के लिए जिनमें से कुछ का जानना, कुछ का छोड़ना तथा कुछ का ग्रहण करना प्रावश्यक है / यहाँ तत्व शब्द का अर्थ अनादि-अनन्त और स्वतंत्र भाव नहीं है, किन्तु मोक्षप्राप्ति में उपयोगी होने वाला ज्ञेयभाव है। तत्त्वों की उपयोगिता--प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'मोक्षमार्गगति' है, अतः इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय मोक्ष होने से मुमुक्षयों के लिए जिन वस्तुओं का जानना आवश्यक है, उनका यहाँ तत्त्वरूप में वर्णन है / मोक्ष तो मुख्य साध्य है ही, इसलिए उसको तथा उसके कारणों को जाने बिना मोक्षमार्ग में मुमुक्ष की प्रवृत्ति नहीं हो सकती। इसी प्रकार यदि मुमुक्षु मोक्ष के विरोधी 2. 1. (क) न्यायकुमुदचन्द्र . पृ. 669 (ख) द्रव्यसंग्रह, गा. 16 प्रकाशावरण शरीरादि यस्या निमित्तं भवति सा छाया / / 16 / / सा छाया दुधा व्यवतिष्ठते, तवर्णादिविकारात् प्रतिबिम्बमात्रग्रहणाच्च। प्रादर्शतलादिषु प्रसन्नद्रव्येष मुखादिन्छाया तद्वर्णादिपरिणता उपलभ्यते, इतरत्र प्रतिबिम्बमात्रमेव / -राजवार्तिक 524116-17 3. (क) स्याद्वादमंजरी (ख) स्थानांग. स्या. 9 वृत्ति (ग) तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलाल जी) पृ. 6, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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