________________ [उत्तराध्ययनसूत्र पर्यायवाची माना गया है। तत्त्वार्थसूत्र में भी मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध को * एकार्थक बताया गया है। वस्तुतः ईहा आदि मतिज्ञान में ही गभित हैं / ' ज्ञान का अर्थ यहाँ सम्यग्ज्ञान--प्रस्तुत में ज्ञान शब्द से सम्यग्ज्ञान हो गृहीत होता है, मिथ्याज्ञान नहीं, क्योंकि सम्यग्ज्ञान ही मोक्ष का कारण है। मिथ्याज्ञान मोक्ष का हेतु नहीं है / विशिष्ट शब्दों के विशेषार्थ नाणीहि-ज्ञानियों ने-तीर्थंकरों ने, दव्वाण--जीवादि द्रव्यों का, गुणाण-रूप आदि गुणों का, पज्जवाणं---जूतनत्व, पुरातनत्व प्रादि अनुक्रम से होने वाले पर्यायों (परिवर्तनों) का, नाणं--ज्ञायक है--जानने वाला है / / पंचविध ज्ञान : द्रव्य-गुण-पर्यायज्ञाता कैसे ? -यहाँ केवलज्ञान की अपेक्षा से पंचविध ज्ञान को सर्वद्रव्य-गुण-पर्यायज्ञाता कहा है, केवलज्ञान के अतिरिक्त अन्य ज्ञान तो नियमित पर्यायों को ही जान सकते हैं। द्रव्य, गुण और पर्याय का लक्षण 6. गुणाणमासओ दव्वं एगदव्यस्सिया गुणा / लक्खणं पज्जवाणं तु उभो अस्सिया भवे // [6] (जो) गुणों का आश्रय (प्राधार) है, (वह) द्रव्य है। (जो) केवल द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण कहलाते हैं और जो दोनों अर्थात् द्रव्य और गुणों के आश्रित हों उन्हें पर्याय (पर्यव) कहते हैं। 7. धम्मो अहम्मो प्रागासं कालो पुग्गल-जन्तवो। एस लोगो ति पन्नत्तो जिणेहि वरदंसिहि / / [7] वरदर्शी जिनवरों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जोव; यह (षड्द्रव्यात्मक) लोक कहा है। 8. धम्मो अहम्मो प्रागासं दव्वं इक्किक्कमाहियं / ___ अणन्ताणि य दव्याणि कालो पुग्गल-जन्तवो।। [8] धर्म, अधर्म और आकाश, ये तीनों द्रव्य (संख्या में) एक-एक कहे गए है। काल, पुद्गल और जीव, ये तीनों द्रव्य अनन्त-अनन्त हैं। 9. गइलक्खणो उ धम्मो ब्रहम्मो ठाणलक्षणो। भायणं सव्वदम्वाणं नहं ओगाहलक्खणं // {6] गति (गतिहेतुता) धर्म (धर्मास्तिकाय) का लक्षण है। स्थिति (होने में हेतु होना) 1. (क) ईहापोहपीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पन्ना सव्वं प्राभिणिवोहियं // -तन्दीसूत्र गा. 77 (ख) मतिःस्मृतिः संज्ञा चिन्ता अभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् / -तत्त्वार्थ सूत्र 1113 2. तत्त्वार्थसत्र 11 भाष्य 3. उत्तराध्ययन (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 224 4. वही, भा. 2, पत्र 224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org