________________ सत्ताईसवाँ अध्ययन : खलुकीय] [459 भाग जाता है। (2) अपने स्वामी और शकट को उन्मार्ग में लाकर किसी विषमप्रदेश में गाड़ी को तोड़ कर स्वयं भाग जाता है।' धम्मजाणंमि–मुक्तिनगर में पहुंचने वाले धर्मयान (संयम-रथ) में जोते हुए (प्रेरित) वे धृतिदुर्बल (संयम में दुःस्थिर) कुशिष्य उसे ही तोड़ देते हैं, अर्थात्-संयमक्रियानुष्ठान से स्खलित हो जाते हैं / प्राचार्य गार्य का चिन्तन 9. इड्ढीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे / सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे // [6] (गार्याचार्य-) (मेरा) कोई (शिष्य) ऋद्धि (ऐश्वर्य) का गौरव (अहंकार) करता है, इनमें से कोई रस का गौरव करता है, कोई साता (-सुख) का गौरव करता है, तो कोई शिष्य चिरकाल तक क्रोधयुक्त रहता है / 10. भिक्खालसिए एगे एगे प्रोमाणभीरुए थद्ध / एगं च अणुसासम्मी हेहिं कारणेहि य // [10] कोई भिक्षाचरी करने में आलसी है, तो कोई अपमान से डरता है तथा कोई शिष्य स्तब्ध (अहंकारी) है, किसी को मैं हेतुत्रों और कारणों से अनुशासित करता (शिक्षा देता) हूँ, (फिर भी वह समझता नहीं।) 11. सो वि अन्तरभासिल्लो दोसमेव पकुम्बई / पायरियाणं तं वयणं पडिक्लेइ अभिक्खणं // [11] इतने पर भी वह बीच में बोलने लगता है, (गुरु के वचन में) दोष निकालने लगता है, प्राचार्यों के उस (शिक्षाप्रद) वचन के प्रतिकूल बार-बार आचरण करता है / 12. न सा ममं वियाणाइ न वि सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ / |12] (किसी के यहाँ से भिक्षा लाने के लिए कहता हूँ, तो कोई शिष्य उत्तर देता है-.) वह (श्राविका) मुझे नहीं जानती (पहचानती). अतः वह मुझे देगी भी नहीं / (अथवा कहता है--) मैं समझता हूँ, वह घर से बाहर चली गई होगी / अथवा इसके लिए कोई दूसरा साधु जाए। 13. पेसिया पलिउंचन्ति ते परियन्ति समन्तओ। रायवेट्ठि व मन्नन्ता करेन्ति भिडि मुहे / / [13] (किसी प्रयोजनविशेष से) भेजने पर, (बिना कार्य किये) वापस लौट आते हैं, 1. (क) उत्प्राबल्येन (जूहित्ता इति) स्वस्वामिनं शकटं उन्मार्ग लात्वा कुत्रचिद् विषमप्रदेशे भङ क्त्वा स्वयं पलायते। (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 220 2. उत्तरा. वृत्ति, अभिधान रा, कोष भा. 3, पृ. 726 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org