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________________ छब्बीसवाँ अध्ययन : सामाचारी] [451 39. पासवणुच्चारभूमि च पडिलेहिज्ज जयं जई। __ काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं // [36] यतना में प्रयत्नशील मुनि फिर प्रस्रवण (भूमि) और उच्चारभूमि का प्रतिलेखन करे, उसके बाद सर्वदुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे / विवेचन–चतुर्थ प्रहर की चर्या का कम-प्रस्तुत तीन गाथाओं (37 से 36 तक) में चतुर्थ प्रहर की चर्या का क्रम इस प्रकार बताया गया है---(१) प्रतिलेखना, (2) पात्र बांधकर रखना, (3) स्वाध्याय, (4) गुरुवन्दन-काल का कायोत्सर्ग करके शय्याप्रतिलेखन, (5) उच्चार-प्रस्रवण भूमि-प्रतिलेखन और अन्त में (6) कायोत्सर्ग।' देवसिक प्रतिक्रमण 40. देसियं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो। नाणे य दंसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य / / [40] ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित दिवस सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे। 41. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तन्नो गुरु / वेसियं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम / / [41] कायोत्सर्ग को पूर्ण (पारित) करके गुरु को वन्दना करे। तदनन्तर क्रमशः दिवससम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे / 42. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरु / काउस्सग्गं तो कुज्जा सम्बदुक्खविमोक्खणं // [42] (इस प्रकार) प्रतिक्रमण करके निःशल्य होकर गुरु को बन्दना करे। तत्पश्चात् सर्वदुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे / 43. पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरु / थुइमंगलं च काऊण कालं संपडिलेहए / / [43] कायोत्सर्ग पूरा (पारित) करके गुरु को वन्दना करे / फिर स्तुति-मंगल (सिद्धस्तव) करके काल का सम्यक् प्रतिलेखन करे / विवेचन-देवसिक प्रतिक्रमण का क्रम-३६ वीं माथा के अन्त में दूसरी पंक्ति में जो कायोत्सर्ग का विधान किया गया था, वह इसी प्रतिक्रमण से सम्बन्धित है, जो 40 वीं गाथा से प्रारम्भ होता है। अर्थात् प्रतिक्रमण प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वदुःखनाशक कायोत्सर्ग करे, उसमें (40 वीं गाथा के अनुसार) ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित दिन भर में जो भी अतिचार लगे हों, उनका क्रमश: चिन्तन करे। 1. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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