________________ छब्बीसवां अध्ययन : सामाचारी [443 2-8 m rom + + + + + + + 3-0 3. भाद्रपद पूणिमा 2 3-4 4. पाश्विन पूणिमा 3-0 3-8 5. कार्तिक पूर्णिमा 36. मृगसिर पूर्णिमा 37. पौष पूर्णिमा 4 4-10 8. माघ पूर्णिमा 3 4-6 9. फाल्गुन पूर्णिमा 3 4-0 10. चैत्र पूणिमा 3 3-8 11. वैशाख पूर्णिमा 212. ज्येष्ठ पूर्णिमा 2- 4 = 2-4 + 6 = 2-10 20. तम्मेव य नक्खत्ते गयणचउम्भागसावसेसंमि / __वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा // [20] वही नक्षत्र जब आकाश के अन्तिम चतुर्थ भाग में प्रा जाता है (अर्थात् रात्रि का अन्तिम चौथा प्रहर आ जाता है, तब उसे वैरात्रिक काल समझ कर मुनि स्वाध्याय में प्रवृत्त हो जाए। विवेचन-रात्रि के चार भाग-(१) प्रादोषिक (रात्रि का मुख भाग), (2) अर्धरात्रिक, (3) वैरात्रिक और (4) प्राभातिक / प्रादोषिक और प्राभातिक इन दो प्रहरों में स्वाध्याय किया जाता है। अर्धरात्रि में ध्यान और वैरात्रिक में शयनक्रिया (निद्रा-ग्रहण)। प्रस्तुत दो गाथाओं (18-16) में मुनि की रात्रि की दिनचर्या की विधि बताई गई है। दशवैकालिकसूत्र में निर्दिष्ट-- 'काले कालं समायरे'--'सब कार्य ठीक समय पर करे' मुनि को चर्या का प्रमुख प्रेरणासूत्र है / ' 'नक्खत्तं तम्मि नहचउम्भाए संपत्ते' जो नक्षत्र चन्द्रमा को रात्रि के अन्त तक पहुँचाता है, वह जब अाकाश के चतुर्थ भाग में आता है, उस समय प्रथम पौरुषी का कालमान होता है / इसी प्रकार वह नक्षत्र जब समग्र क्षेत्र का अवगाहन कर लेता है, तब रात्रि के चारों प्रहर बीत जाते हैं / जो नक्षत्र पूर्णिमा को उदित होता है और चन्द्र को रात्रि के अन्त तक पहुँचाता है, उसी नक्षत्र के नाम पर महीने के नाम रखे गए हैं / श्रावण और ज्येष्ठ मास इसके अपवाद हैं।' विशेष दिनचर्या 21. पुस्विल्लंमि चउडमाए पडिलेहिताण भण्डयं / गुरु वन्दित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं // [21] दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में पात्र आदि भाण्डोपकरणों का प्रतिलेखन करके (फिर) गुरु को वन्दन कर दुःख से विमुक्त करने वाला स्वाध्याय करे / 1. (क) प्रोधनियुक्ति गा. 658 वृत्ति, पत्र 205, गा. 662-663 (ख) दशवकालिक 5 / 2 / 4 2. (क) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वक्षस्कार 7, सू. 162 (ख) उत्तरा. (गुजराती भावनगर) भा. 2, पत्र 210 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org