________________ छब्बीसइमं अज्झयणं : छव्वीसवाँ अध्ययन सामायारो : सामाचारी सामाचारी और उसके दश प्रकार 1. सामायारि पवक्खामि सव्वदुक्खबिमोणि / ___ जं चरित्ताण निग्गन्था तिण्णा संसारसागरं / / [1] जो समस्त दुःखों से मुक्त कराने वाली है और जिसका आचरण करके निम्रन्थ संसारसागर को पार कर गए हैं, उस सामाचारी का मैं प्रतिपादन करूंगा। 2. पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया। आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा // [2] पहली सामाचारी आवश्यकी है और दूसरी नैषेधिकी है, तीसरी प्रापृच्छना है और चौथी प्रतिपृच्छना है। 3. पंचमा छन्दणा नाम इच्छाकारो य छट्ठओ। ___ सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो // [3] पांचवीं का नाम छन्दना है और छठी इच्छाकार है तथा सातवीं मिथ्याकार और पाठवीं तथाकार है। 4. अब्भुटाणं नवमं दसमा उवसंपदा / एसा दसंगा साहूर्ण सामायारी पवेइया / [4] नौवीं अभ्युत्थान है और दसवीं सामाचारी उपसम्पदा है। इस प्रकार यह दस अंगों वाली साधुओं की सामाचारी बताई गई है। विवेचन--सामाचारी : विशेषार्थ-(१) सम्यक् आचरण समाचार कहलाता है, अर्थातशिष्टाचारित क्रियाकलाप, उसका भाव है--सामाचारी, (2) साधुवर्ग की इतिकर्तव्यता अर्थात् कर्तव्यों की सीमा, (3) समयाचारी अर्थात् आगमोक्त-अहोरात्र-क्रियाकलापसूचिका, अथवा (4) साधुजीवन के प्राचार-व्यवहार की सम्यक् व्यवस्था / ' सबदुक्खविमोक्खणि--समस्त शरीरिक, मानसिक दुःखों से विमुक्ति की हेतु / ' 1. (क) 'समाचरणं समाचार:--शिष्टाचरितः क्रियाकलापस्तस्य भावः / ' –ोधनियुक्तिटीका (ख) 'साधुजनेतिकर्तव्यतारूपाम् सामाचारी' -बृहद्वृत्ति, पत्र 534 (ग) अागमोक्त अहोरात्रक्रियाकलापे। —म. 1 अघि; (घ) 'संव्यवहारे' -स्था. 10, स्था. उ. 3 2. उत्तरा. बृहद्वत्ति, अभि. रा. कोष –भा. 7, पृ. 771 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org