________________ 430 [उत्तराध्ययनसूत्र [31] केवल मस्तक मुडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता और न प्रोंकार का जाप करने मात्र से ब्राह्मण होता है, अरण्य में निवास करने से ही कोई मुनि नहीं हो जाता और न कुशनिर्मित चीवर के पहनने मात्र से कोई तापस होता है। 32. समयाए समणो होइ बम्भचेरेण बम्भणो। नाणेण य मुणी होइ तवेणं होइ तावसो / [32] समभाव (धारण करने) से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य (पालन) से ब्राह्मण होता है, ज्ञान (प्राप्त करने) से मुनि होता है और तपश्चरण करने से तापस होता है / 33. कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मणा होइ खत्तिो / ___ वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा // [33] कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है। 34. एए पाउकरे बुद्ध जेहि होई सिणायओ। सम्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं // [34] प्रबुद्ध (अर्हत्) ने इन (तत्त्वों) को प्रकट किया है / इसके द्वारा जो स्नातक (परिपूर्ण) होता है तथा सर्वकर्मों से विमुक्त होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं / 35. एवं गुणसमाउत्ता जे भवन्ति दिउत्तमा / ते समत्था उ उद्धत्तु परं अप्पाणमेव य / / [35] इस प्रकार जो गुणसम्पन्न (पंच महाव्रती) द्विजोत्तम होते हैं, वे ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ होते हैं / विवेचन ब्राह्मण-श्रमणादि के वास्तविक लक्षण-प्रस्तुत गाथाओं में मुनिवर जयघोष ने एकएक असाधारण गुण द्वारा यह स्पष्ट पहचान बता दी है कि श्रमण, ब्राह्मण, मुनि, तपस्वी तथा ब्राह्मणादि चारों वर्ण किन-किन गुणों से अपने वास्तविक स्वरूप में समझे जाते हैं।' ब्राह्मणादि चारों वर्ण जन्म से नहीं, कर्म (क्रिया) से-इस गाथा का प्राशय यह है कि ब्राह्मण केवल वेद पढ़ने एवं यज्ञ करने या जपादि करने मात्र से नहीं होता। उसके लिए उस वर्ण के असाधारण गुणों से उसकी पहचान होती है / जैसे कि ब्राह्मण का लक्षण किया गया है क्षमा दानं दमो ध्यान, सत्यं शौचं धतिघणा / ज्ञान-विज्ञानमास्तिक्यमेतद् ब्राह्मणलक्षणम् // क्षमा, दान, दम, ध्यान, सत्य, शौच, धैर्य और दया, ज्ञान, विज्ञान और आस्तिक्य, ये ब्राह्मण के लक्षण हैं / इन गुणों से जो युक्त हो, वही ब्राह्मण है / इसी प्रकार शरणगतरक्षण रूप गुण से क्षत्रिय 1. उत्तरा (गुजराती अनुवाद भावनगर) भा. 2, पत्र 203-204 का सारांश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org