________________ चौवीसवाँ अध्ययन : प्रवचनमाता] [415 प्रकार के उपकरणों को सदा आँखों से पहले प्रतिलेखन (देख-भाल) करके और फिर प्रमार्जन करके ग्रहण करे या रखे। विवेचन--ओघौषधि और प्रौपग्रहिकौपधि---उपधि अर्थात् उपकरण, रजोहरण आदि नित्यग्राह्य रूप सामान्य उपकरण को औधिक उपधि और कारणवश ग्राह्य दण्ड आदि विशेष उपकरण को औपग्रहिक उपधि कहते हैं।' पडिलेहिता पमज्जेज्ज-जिस उपकरण को उठाना या रखना हो, उसे पहले आँखों से भलीभांति देख-भाल (प्रतिलेखन कर) ले, ताकि उस पर कोई जीव-जन्तु न हो, फिर रजोहरण प्रादि से प्रमार्जन कर ले, ताकि कोई जीव-जन्तु हो तो वह धीरे से एक ओर कर दिया जाए, उसकी विराधना न हो। परिष्ठापनासमिति : प्रकार और विधि -15. उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाण-जल्लियं / आहारं उहि देहं अन्नं वावि तहाविहं / [15] उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, सिंघानक, जल्ल, आहार, उपधि, शरीर तथा अन्य इस प्रकार की परिष्ठापन-योग्य वस्तु का विवेकपूर्वक स्थण्डिलभूमि में उत्सर्ग करे / 16. अणावायमसंलोह अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए प्रावाए चेय संलोए / [16] स्थण्डिलभूमि चार प्रकार की होती है.---(१) अनापात-प्रसंलोक, (2) अनापातसंलोक, (3) आपात-असंलोक और (4) आपात-संलोक / / 17. अणावायमसंलोए परस्सऽणुवघाइए / समे अझसिरे यावि अचिरकालकमि य // 18. वित्थिपणे दूरमोगाढे नासन्ने बिलवज्जिए / तसपाण-बीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे // [17-18] जो भूमि (1) अनापात-असंलोक हो, (2) उपघात (दूसरे के और प्रवचन के उपघात) से रहित हो, (3) सम हो, (4) अशुषिर (पोली नहीं) हो तथा (5) कुछ समय पहले ही (दाहादि से) निर्जीव हुई हो, (6) जो विस्तृत हो, (7) गाँव (बस्ती), बगीचे अादि से दूर हो, (E) बहुत नीचे (चार अंगुल तक) अचित्त हो, (8) बिल से रहित हो तथा (10) त्रस प्राणी और बीजों से रहित हो, ऐसी (10 विशेषताओं वाली) भूमि में उच्चार (मल) आदि का विसर्जन करे। 1. (क) उत्तरा. प्रियदशिनीटीका भा. 3, पृ. 982 (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 192 2. (क) उत्तरा. गुजराती भाषान्तर भा. 2, पत्र 192 (ख) उत्तरा. प्रियशनीटीका भा, 3, प्र. 983 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org