________________ तुलना कीजिए "मृतं पुत्रं दुःखपुष्टं मनुष्या उत्क्षिप्य राजन् ! स्वगृहानिहरन्ति / त मुक्तकेशाः करुणं रुदन्ति चितामध्ये काष्ठमिव क्षिपन्ति / / " --उद्योग, 40/15 "अग्नी प्रास्तं तु पुरुषं, कर्मान्वेति स्वयं कृतम् / " -उद्योग. 40/18 "चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च, खेत्त गिहं धणधन्नं च सव्वं / कम्मप्पबीयो अवसो पयाइ, परं भवं सुदर पावगं वा // " उत्तराध्ययनसूत्र 13/24 तुलना कीजिए--- "अन्यो धनं प्रेतमतस्य भङ क्ते, वयांसि चाग्निश्च शरीरधातून् / द्वाभ्यामयं सह गच्छत्यमुत्र, पुण्येन पापेन च चेष्ट्यमानः / / " .--उद्योगपर्व 40/17 "तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से, चिईगयं डहिय उ पावणं / भज्जा य पुत्ता बि य नायत्रो य, दायारमन्नं प्रणसंकमन्ति // " --उत्तराध्ययनसूत्र 1325 तुलना कीजिए-- "उत्सृज्य विनिवर्तन्ते, ज्ञातयः सुहृदः सुताः / / अपुष्पानफलान वक्षान, यथा तात : पतत्रिणः / / " -उद्योग. 40/17 "अनुगम्य विनाशान्ते, निवर्तन्ते ह बान्धवाः / अग्नी प्रक्षिप्य पुरुषं, ज्ञातयः सुहृदस्तथा // " -शान्ति. 321/74 "अचेटु कालो तूरन्ति राइनो, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा / उविच्च भोगा पुरिसं चन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी / / " -उत्तराध्ययनसूत्र 13/31 तुलना कीजिए "अच्चयन्ति अहोरत्ता" -थेरगाथा 148 सरपेन्टियर ने प्रस्तुत अध्ययन की तीन गाथाओं को अर्वाचीन माना है, किन्तु उसके लिए उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया है। उत्तराध्ययन के चणि व अन्य व्याख्या-साहित्य में कहीं पर भी इस सम्बन्ध में पुर्वाचार्यों ने ऊहापोह नहीं किया है। ये तीनों गाथाएँ प्रकरण की दृष्टि से भी उपयुक्त प्रतीत होती हैं, क्योंकि इन गाथानों का सम्बन्ध आगे की गाथाओं से है / यह सत्य है कि प्रारम्भ की तीन गाथाएँ आर्या छन्द में निबद्ध हैं तो आगे की अन्य गाथाएँ अनुष्टप, उपजाति प्रभति बिभिन्न छन्दों में निर्मित हैं। किन्तु छन्दों की पृथकता के कारण उन गाथानों को प्रक्षिप्त और अर्वाचीन मानना अनुपयुक्त है। [ 51 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org