SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इषुकारीय कथा : एक चिन्तन ___ चौदहवें अध्ययन में राजा इषुकार, महारानी कमलावती, भृगु पुरोहित, यशा पुरोहित-पत्नी तथा भगु पुरोहित के दोनों पुत्र, इन छह पात्रों का वर्णन है। पर राजा की प्रधानता होने के कारण इस अध्ययन का नाम "इषुकारीय' रखा गया है, ऐसा नियुक्तिकार का मंतव्य है / 544 श्रमय भगवान महावीर के युग में अनेक विचारकों की यह धारणा थी कि विना पुत्र के सद्गति नहीं होती।'४१ स्वर्ग सम्प्राप्त नहीं होता / अत: प्रत्येक व्यक्ति को गृहस्थ-धर्म का पालन करना चाहिए। जिससे सन्तानोत्पत्ति होगी और लोक तथा परलोक, दोनों सुधरेंगे। परलोक को सुखी बनाने के लिए पुत्रप्राप्ति हेतु विविध प्रयत्न किये जाते थे। भगवान महावीर ने स्पष्ट शब्दों में इस मान्यता का खण्डन किया। उन्होंने कहास्वर्ग और नरक की उपलब्धि सन्तान से नहीं होती। यहाँ तक कि माता-पिता, भ्राता, पुत्र, स्त्री आदि कोई भी कर्मो के फल-विपाक से बचाने में समर्थ नहीं है। सभी को अपने ही कर्मो का फल भोगना पड़ता है। इस कथन का चित्रण प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है। __ प्राचार्य भद्रबाहु ने प्रस्तुत अध्ययन में आये हुए सभी पात्रों के पूर्वभव, वर्तमानभव और निर्वाण का संक्षेप में वर्णन किया है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि माता-पिता मोह के वशीभूत होकर पुत्रों को मिथ्या बात कहते हैं-जैन श्रमण बालकों को उठाकर ले जाते हैं। वे उनका मांस खा जाते हैं। किन्तु जब बालकों को सही स्थिति का परिज्ञान होता है तो वे श्रमणों के प्रति प्राकर्षित ही नहीं होते किन्तु श्रमणधर्म को स्वीकार करने को उद्यत हो जाते हैं। इस अध्ययन में पिता और पुत्र का मधुर संवाद है। इस संवाद में पिता आह्मणसंस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रहा है तो पुत्र श्रमणसंस्कृति का। ब्राह्मणसंस्कृति पर श्रमणसंस्कृति की विजय बताई गई है। उनकी मौलिक मान्यताओं की चर्चा है। पुरोहित भी त्यागमार्ग को ग्रहण करता है और उसकी पत्नी आदि भी। प्रस्तुत अध्ययन का गहराई से अध्ययन करने पर यह भी स्पष्ट होता है कि उस युग में यदि किसी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था तो उसकी सम्पत्ति का अधिकारी राजा होता था। भगू पुरोहित का परिवार दीक्षित हो गया तो राजा ने उसकी सम्पत्ति पर अधिकार करना चाहा, किन्तु महारानी कमलावती ने राजा से निवेदन किया-जैसे वमन किये हए पदार्थ को खाने वाले व्यक्ति की प्रशंसा नहीं होती, वैसे ही ब्राह्मण क द्वारा परित्यक्त धन को ग्रहण करने वाले की प्रशंसा नहीं हो सकती। वह भी वमन खाने के सहश है / प्राचार्य भद्रबाह ने प्रस्तुत अध्ययन के राजा का नाम 'सीमन्धर' दिया है 146 तो वादोवताल शान्तिसूरि ने लिखा है---- 'इषकार' यह राज्यकाल का नाम है तो 'सीमन्धर' राजा का मौलिक नाम होना संभव है।४० 144. उसुपारनामगोए वेयंतो भावनो अउसुप्रारो। तत्तो समुट्ठियमिणं उसुप्रारिज्जति अज्झयण // ---उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा 362 145. "अपुत्रस्य गति स्ति, स्वर्गो नैव च नैव च / गृहिधर्ममनुष्ठाय, तेन स्वर्ग गमिष्यति // " 146. सीमंधरो य राया .....! --उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 373 147. अत्र चेष कारमिति राज्यकालनाम्ना सीमन्धरश्चेति मौलिकनाम्नेति सम्भावयामः / -बृहद्वृत्ति, पत्र 394 [ 52 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy