________________ . 402] [उत्तराध्ययनसूत्र जन्ममरणादि जलप्रवाह का प्रवेश ही नहीं है। धर्म ही जन्ममरणादि दुःख से बचा कर मुक्तिसुख का कारण बनता है।' दसवाँ प्रश्नोत्तर : महासमुद्र को नौका से पार करने के सम्बन्ध में 69. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! / / [66] (केशी कुमारश्रमण) हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा बहुत सुशोभन है, आपने मेरा संशय-निवारण कर दिया। परन्तु मेरा एक और संशय है / गौतम ! उसके सम्बन्ध में भी मुझे बताइए। 70. अण्णवंसि महोहंसि नावा विपरिधावई। जंसि गोयममारूढो कहं पारं गमिस्ससि ? // [70] गौतम ! महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही (इधर-उधर भागती) है, (ऐसी स्थिति में) आप उस पर आरूढ होकर कैसे (समुद्र) पार जा सकोगे ? 71. जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गाभिणी। जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिणी / / [71] (गणधर गौतम)—जो नौका छिद्रयुक्त (फूटी हुई) है, वह (समुद्र के) पार तक नहीं जा सकती, किन्तु जो नौका छिद्ररहित है, वह (समुद्र) पार जा सकती है / 72. नावा य इइ का बुत्ता ? केसी गोयममम्बधी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमन्बवी // [72] (केशी कुमारश्रमण)-केशी ने गौतम से पूछा-आप नौका किसे कहते हैं ? केशी के यों पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा 73. सरीरमाहु नाव त्ति जीवो युच्चइ नाविओ। संसारो अग्णवो वुत्तो जं तरन्ति महेसिणो॥ [73] (गणधर गौतम)-शरीर को नौका कहा गया है और जीव (आत्मा) को इसका नाविक (खेवैया) कहा जाता है तथा (जन्ममरणरूप चातुर्गतिक) संसार को समुद्र कहा गया है, जिसे महर्षि पार कर जाते हैं। विवेचन-अस्साविणी नावा प्रास्राविणी नौका का अर्थ है-जिसमें छिद्र होने से पानी अन्दर प्राता हो, भर जाता हो, जिसमें से पानी रिसता हो, निकलता हो। निरस्साविणी नावा-निःस्राविणी नौका वह है, जिसमें पानी अन्दर न आ सके, भर न सके। 1. उत्तरा. वृत्ति, अ. रा. को. भा. 3, पृ. 965 2. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. 3, पृ. 953 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org