________________ 400] उत्तराध्ययनसूत्र 62. मग्गे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममम्बयो / केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी / / [62] (केशी कुमारश्रमण)—केशी ने गौतम से पुनः पूछा-'मार्ग किसे कहा गया है ?' केशी के इस प्रकार पूछने पर गौतम ने यह कहा 63. कुप्पवयण—पासण्डी सबे उम्मग्गपटिया। ___ सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे / / [63] (गणधर गौतम)--कुप्रवचनों (मिथ्यादर्शनों) को मानने वाले सभी पाषण्डी---- (व्रतधारी लोग) उन्मार्गगामी हैं, सन्मार्ग तो जिनेन्द्र-वीतराग द्वारा कथित है और यही मार्ग उत्तम है। विवेचन--जेहिं नासंति जंतवो-यहाँ कुपथ का अर्थ धर्म-सम्प्रदाय विषयक कुमार्ग है / जिन कुमार्गों पर चलकर बहुत-से लोग दुर्गतिरूपी अटवी में जा कर भटक जाते हैं, अर्थात्-मार्गभ्रष्ट हो जाते हैं / गौतम ! आप उन कुमार्गों से कैसे बच जाते हो ? सम्वे ते वेइया मज्म-इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि 'मैंने सन्मार्ग और कुमार्ग पर चलने वालों को भलीभांति जान लिया है / सन्मार्ग और कुमार्ग का ज्ञान मुझे हो गया है। इसी कारण मैं कुमार्ग से बचकर, सन्मार्ग पर चलता हूँ। मैं मार्गभ्रष्ट नहीं होता।" कुप्पवयण पासंडी-कुत्सित प्रवचन अर्थात् दर्शन कुप्रवचन हैं, क्योंकि उनमें एकान्तकथन तथा हिंसादि का उपदेश है / उन कुप्रवचनों के अनुगामी पाषण्डी (पाखण्डी) अर्थात्-व्रती अथवा एकान्तवादी जन। सम्मग्गं तु जिणक्खायं वीतराग द्वारा प्ररूपित मार्ग ही सन्मार्ग है, क्योंकि इस का मूल दया और विनय है, इसलिए यह सर्वोत्तम है / नौवाँ प्रश्नोत्तर : धर्मरूपी महाद्वीप के सम्बन्ध में 64. साहु गोयम! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! // [64] (केशी कुमारश्रमण)-'हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा प्रशस्त है। आपने मेरा यह सन्देह मिटा दिया, किन्तु मेरे मन में एक और सन्देह है, उसके विषय में भी मुझे कहिए।' 65. महाउदग-वेगेणं बुज्झमाणाण पाणिणं / सरणं गई पइट्ठा य दीवं कं मानसी मुणी ? [65] मुनिवर ! महान् जलप्रवाह के वेग से बहते (-डूबते) हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप आप किसे मानते हो ? 1. बृहद्वृत्ति, अ. रा. कोष भा. 3, पृ. 964 2. वही, पृ. 964 : कुत्सितानि प्रवचनानि कुप्रवचनानि-कुदर्शनानि, तेषु पाखण्डिन:--कुप्रवचनपाखण्डिनः एकान्तवादिनः / 3. वही, पृ. 964 : जिनोक्त, सर्वमार्गेषु उत्तमः-दयाविनयमूलत्वादित्यर्थः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org