________________ तेईसवाँ अध्ययन : केशि-गौतमीय] [399 57. अस्से य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममम्बवो। ____ केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमन्बवी। [57] (केशी कुमारश्रमण)—यह अश्व क्या है—श्व किसे कहा गया है ? -इस प्रकार केशी ने गौतम से पूछा / केशी के ऐसा पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा 58. मणो साहसिनो भीमो दुट्ठस्सो परिधावई / तं सम्मं निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कन्थगं / [58] (गणधर गौतम-) मन ही वह साहसी, भयंकर और दृष्ट अश्व है, जो चारों ओर दौड़ता है / उसे मैं सम्यक् प्रकार से वश में करता हूँ। धर्म शिक्षा से वह कन्थक ( उत्तम जाति के प्रश्व) के समान हो गया है। विवेचन-हीरसि-उन्मार्ग में कैसे नहीं ले जाता ? सुपरस्सीसमाहियं-श्रुत अर्थात्-सिद्धान्त रूपी रश्मि --लगाम से समाहित-नियंत्रित / साहसिओ-(१) सहसा बिना विचारे काम करने वाला, (2) साहस (हिम्मत) करने वाला। धम्मसिक्खाए निगिण्हामि-धर्म के अभ्यास (शिक्षा) से मैं मनरूपी दुष्ट अश्व को वश में करता हूँ।' पाठवाँ प्रश्नोत्तर : कुपथ-सत्पथ के विषय में 59. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झतं मे कहसु गोयमा ! // [5] (केशी कुमारश्रमण)-गौतम ! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया, (किन्तु) मेरा एक संशय और भी है, गौतम ! उसके सम्बन्ध में मुझे बताइए / 60. कुप्पहा बहवो लोए जेहि नासन्ति जंतवो / अद्धाणे कह वट्टन्ते तं न नस्ससि ? गोयमा ! // 160] गौतम ! संसार में अनेक कुपथ हैं, जिन (पर चलने) से प्राणी भटक जाते हैं। सन्मार्ग पर चलते हुए श्राप कैसे नहीं भटके-भ्रष्ट हुए ? " 61. जे य मग्गेण गच्छन्ति जे य उम्मग्गपट्टिया। ते सव्वे विइया मज्भं तो न नस्सामहं मुणी ! // [61] (गौतम गणधर)--मुनिवर ! जो सन्मार्ग पर चलते हैं और जो लोग उन्मार्ग पर चलते हैं, वे सब मेरे जाने हुए हैं / इसलिए मैं भ्रष्ट नहीं होता हूँ। 1. (क) बृहद्वृत्ति, अभिधान रा. कोष भा. 3, पृ. 964 (ख) सहसा असमीक्ष्य प्रवर्तते इति साहसिकः। -बृहद्वत्ति, पत्र 507 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org