________________ [उत्तराध्ययनसूत्र 40. दीसन्ति बहवे लोए पासबद्धा सरीरिणो। मुक्कपासो लहुन्भूओ कहं तं विहरसी मुणी ! // [40] इस लोक में बहुत-से शरीरधारी-जीव पाशों (बन्धनों) से बद्ध दिखाई देते हैं / मुने ! आप बन्धन (पाश) से मुक्त और लघुभूत (वायु की तरह अप्रतिबद्ध एवं हल्के) होकर कैसे विचरण करते हैं ? 41. ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ। मुक्कपासो लहुन्भूओ विहरामि अहं मुणी!॥ [41] (गणधर गौतम)—मुने ! मैं उन पाशों (बन्धनों) को सब प्रकार से काट कर तथा उपाय से विनष्ट कर बन्धन-मुक्त एवं लघुभूत (हल्का) होकर विचरण करता हूँ। 42. पासा य इइ के बुत्ता ? केसी गोयममब्बवी। ___ केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी // [42] (केशी कुमारश्रमण)--गौतम ! पाश (बन्धन) किन्हें कहा गया है ?-(इस प्रकार) केशी ने गौतम से पूछा / केशी के ऐसा पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा 43. रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा। ते छिन्दित्तु जहानायं विहरामि जहक्कम // [43] (गणधर गौतम) तीव्र राग-द्वेष आदि और (पुत्र-कलादिसम्बन्धी) स्नेह भयंकर पाश (बन्धन) हैं। उन्हें (शास्त्रोक्त) धर्मनीति के अनुसार काट कर, (साध्वाचार के) क्रमानुसार मैं विचरण करता हूँ। विवेचन-सव्वसो छित्ता-संसार को अपने चंगुल में फंसाने वाले उन सब बन्धनोंरागद्वेषादि पाशों को पूरी तरह काट कर / उवायत्रो निहतूण-उपाय से अर्थात्-सत्यभावना के या निःसंगता आदि के अभ्यास रूप उपाय से निर्मूल----पुनः उनका बन्ध न हो, इस रूप से उन्हें विनष्ट करके / ' पंचम प्रश्नोत्तर-तृष्णारूपी लता को उखाड़ने के सम्बन्ध में 44. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! // [44] (केशी कुमारश्रमण)-गौतम ! आपकी प्रज्ञा सुन्दर है / आपने मेरा यह संशय मिटा दिया। परन्तु गौतम / मेरा एक और सन्देह है, उसके विषय में भी मुझे कहिए / 1. (क) बृहद्वृत्ति, अभि. रा. कोष भा. 3, पृ. 963 (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. 2, पत्र 181 (ग) उत्तरा. प्रियदशिनीटीका भा. 3, पृ. 932 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org