________________ 390] [उत्तराध्ययनसूत्र पासंडा---'पाषण्ड' शब्द का अर्थ यहाँ घृणावाचक पाखण्डी (ढोंगी, धर्मध्वजी) नहीं, किन्तु अन्यमतीय परिव्राजक या श्रमण अथवा व्रतधारी (स्वसम्प्रदाय प्रचलित प्राचार-विचारधार होता है / बृहद्वतिकार के अनुसार 'पाषण्ड' का अर्थ अन्यदर्शनी परिव्राजकादि है।' अदिस्साणं च भूयाणं--अदृश्य भूतों से यहाँ प्राशय है ऐसे व्यन्तर देवों से जो क्रीडापरायण होते हैं / प्रथम प्रश्नोत्तर : चातुर्यामधर्म और पंचमहाव्रतधर्म में अन्तर का कारण 21. पुच्छामि ते महाभाग ! केसी गोयममब्बी। तमो केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी // [21] केशी ने गौतम से कहा-'हे महाभाग ! मैं पाप से (कुछ) पूछना चाहता हूँ।' केशी के ऐसा कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा -- 22. पुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते केसि गोयममब्बवी। तमो केसी अणुनाए गोयमं इणमब्बवी // _ [22] भंते ! जैसी भी इच्छा हो, पूछिए।' अनुज्ञा पा कर तब केशी ने गौतम से इस प्रकार कहा 23. चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसियो वद्धमाणेण पासेण य महामुणी॥ _[23] "जो यह चातुर्याम धर्म है, जिसका प्रतिपादन महामुनि पार्श्वनाथ ने किया है, और यह जो पंचशिक्षात्मक धर्म है, जिसका प्रतिपादन महामुनि वर्धमान ने किया है।' 24. एगकज्जपवन्नाणं विसेसे कि नु कारणं ? / धम्मे दुविहे मेहावि ! कहं विप्पच्चओ न ते ? // [24] 'मेधाविन् ! दोनों जब एक ही उद्देश्य को लेकर प्रवृत्त हुए हैं, तब इस विभेद (अन्तर) का क्या कारण है ? इन दो प्रकार के धर्मों को देखकर तुम्हें विप्रत्यय (--सन्देह) क्यों नहीं होता? 25. तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी। पन्ना समिक्खए धम्मं तत्तं तत्तविणिच्छयं // [25] केशी के इस प्रकार कहने पर गौतम ने यह कहा--तत्त्वों (जीवादि तत्त्वों) का जिसमें विशेष निश्चय होता है, ऐसे धर्मतत्त्व की समीक्षा प्रज्ञा करती है। 1. (क) पाषण्ड-व्रतं, तद्योगात् पाषण्डाः, शेषधतिनः। --बृहद्वति, पत्र 501 (ख) अशोक सम्राट का 12 वाँ शिलालेख / (ग) 'अन्यदशिनः परिव्राजकादय:। -उत्तरा. वृत्ति, अभिधान राजेन्द्र को. भा. 3, पृ. 961 2. अदृश्यानां भूतानां केलीकिलब्यन्तराणाम् / --उत्तरा. वृत्ति, अभि. रा. को. भा. 3, पृ. 961 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org