________________ जातक में ब्राह्मणों के प्रति तीव्र रोष व्यक्त किया गया है। ब्राह्मणों को अपराध हो जाने से झठन खाने के लिए उत्प्रेरित करना और उन्हें धोखा देना, ये ऐसे तथ्य हैं जो साम्प्रदायिक भावना के प्रतीक हैं। पर जैन कथा में मानवता और सहानुभूति रही हुई है / 14. चित्त और संभूत तरहवें अध्ययन में चित्त और संभूत के पारस्परिक सम्बन्ध और बिसम्बन्ध का वर्णन है। इसलिए इस अध्ययन का नाम नियुक्तिकार भद्रबाहु ने 'चित्रसंभूतीय' लिखा है। ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति से अध्ययन का प्रारम्भ होता है। व्याख्या-साहित्य में सम्पूर्ण कथा विस्तार के साथ दी गई है। चित्र और संभूत पूर्व भव में भाई थे। चित्र का जीव पूरिमताल नगर में सेठ का पुत्र हया और मुनि बना / संभूत का जीव ब्रह्म राजा का पुत्र ब्रह्मदत्त बना। चित्र का जीव जो मुनि हो गया था, ब्रह्मदत्त को संसार की असारता बताकर श्रामण्यधर्म स्वीकार करने के लिए प्रेरणा देता है पर ब्रह्मदत्त भोगों में अत्यन्त प्रासक्त था / अतः उसे उपदेश प्रिय नहीं लगा। पांचवीं, छठी और सातवी गाथा में उनके पूर्व जन्मों का उल्लेख हुआ है। प्राचार्य नेमिचन्द्र ने सुखबोधावृत्ति में उनके पूर्व के पांच भवों का विस्तार से वर्णन किया है / '41 बौद्ध जातकसाहित्य में भी यह कथा प्रकारान्तर से मिलती है। तथागत बुद्ध ने जन्म-जन्मान्तरों तक परस्पर मैत्रीभाव रहता है, यह बताने के लिए यह कथा कही थी। उज्जयिनी के बाहर चाण्डाल ग्राम था। बोधिसत्व ने भी वहाँ जन्म ग्रहण किया था और दूसरे एक प्राणी ने भी वहाँ जन्म लिया था। उनमें से एक का नाम चित्त था और दूसरे का नाम संभूत था। वहाँ पर उनके जीवन के सम्बन्ध में चिन्तन है। उनके तीन पूर्व भवों का भी उल्लेख है। जो इस प्रकार है 18] नरेञ्जरा सरिता के तट पर हरिणी की कोख से उत्पन्न होना। [2] नर्मदा नदी के किनारे बाज के रूप में उत्पन्न होना। 139. Annals of the Bhandarkar oriental Research Institute, Vol. 17 (1935, 1936) 'A few Parallels in Jains and Buddhist works', Page 345, by A. M. Ghatage, M. A. This must have also led the writer to include the other story in the same Jataka. And such an attitude, must have arisen in later times as the effect of sectarian bias. of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. 17. (1935-1936) 'A few Parallels in Jain and Buddhist works', Page 345, by A. M. Ghatage, M. A. 141. आसिमो भायरा दो वि, अन्नमन्नवसाणुगा / अन्नमन्त्रमणू रत्ता, अन्नमन्नहिए सिणो / दासा दसण्णे पासी, मिया कालिजरे नमे / हंसा मयंगतीरे, सोवागा कासिभूमिए / / . देवा य देवलोगम्मि, प्रासि अम्हे महिड्ढिया / इमा नो छद्रिया जाई, अन्नमन्नेण जा विणा / / -उत्तराध्ययनसूत्र, 13/5-7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org