________________ 388] [उत्तराध्ययनसूब सान्तरोत्तर का शब्दानुसारी प्रतिध्वनित अर्थ-अन्तर--अन्तरीय (अधोवस्त्र) और उत्तर----उत्तरीय ऊपर का वस्त्र भी किया जा सकता है।' दोनों की तुलना में इस गाथा का आशय-भगवान महावीर ने अचेल या अल्प चेल (केवल श्वेत प्रमाणोपेत जीर्णप्राय अल्पमूल्य वस्त्र) वाले धर्म का प्रतिपादन किया है, जब कि भगवान् पार्श्वनाथ ने सचेल (प्रमाण और वर्ण की विशेषता से विशिष्ट तथा बहुमूल्य वस्त्र वाले) धर्म का प्रतिपादन किया है। दोनों का परस्पर मिलन : क्यों और कैसे ? 14. अह ते तत्थ सीसाणं विनाय पवितक्कियं / समागमे कयमई उभो केसि-गोयमा // [14] (अपने-अपने शिष्यों को पूर्वोक्त शंका उत्पन्न होने पर) केशी और गौतम दोनों ने शिष्यों के वितर्क-(शंका से) युक्त (विचारविमर्श) जान कर परस्पर वहीं (श्रावस्ती में ही) मिलने का विचार किया। 15. गोयमे पडिरूवन्नू सीससंघ-समाउले। जेठें कुलमवेक्खन्तो तिन्दुयं वणमागओ॥ [15] यथोचित् विनयमर्यादा के ज्ञाता (प्रतिरूपज्ञ) गौतम, केशी श्रमण के कुल को ज्येष्ठ जान कर अपने शिष्यसंघ के साथ तिन्दुक वन (उद्यान) में आए। 16. केसी कुमार-समणे गोयमं दिस्समागयं / पडिरूवं परिवत्ति सम्मं संपडिवज्जई // [16] गौतम को प्राते हुए देख कर केशी कुमारश्रमण ने सम्यक् प्रकार से (प्रतिरूप प्रतिपत्ति) उनके अनुरूप (योग्य) आदरसत्कार किया। 1. (क) सह अन्तरेण उत्तरेण प्रधान-बहुमूल्येन नानावणेन प्रलम्बेन वस्त्रेण यः वर्तते, स सान्तरोत्तरः / ---बृहद्वृत्ति, पत्र 500 (ख) 'सान्तरमुत्तरं प्रावरणीयं यस्य स तथा, क्वचित् प्रावृणोति, क्वचित् पार्श्ववत्ति वित्ति शीताशंकया नाऽद्यापि परित्यजति / आत्मपरितुलनार्थं शीतपरीक्षार्थं च सान्तरोत्तरो भवेत् / -प्राचारांग 1 / 8 / 4 / 51 वृत्ति, पत्र 252 (ग) प्रोपनियुक्ति गा. 726 वृत्ति, कल्पसूत्रचूणि, पत्र 256 उत्तराध्ययन (अनुवाद टिप्पण साध्वी चन्दना) पृ. 442 2. 'अचेलकश्च' उक्तन्यायेनाविद्यमानचेलकः कुत्सितचेलको वा यो धर्मों वर्धमानेन देशित इत्यपेक्ष्यते, तथा 'जो इमो' त्ति पूर्ववद् यश्चायं सान्तराणि-वर्धमानस्वामिसत्क-यतिवस्त्रापेक्षया कस्यचित् कदाचिन्मान-वर्णविशेषतो विशेषितानि उत्तराणि च महाधनमूल्यतया प्रधानानि प्रक्रमाद वस्त्राणि यस्मिन्नसौ सान्तरोत्तरो धर्मः दावन देशित इतीहापेक्ष्यते। -बहबत्ति, पत्र 500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org