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________________ बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय] [377 48. तीसे सो बयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं / ___ अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ। [48] उस संयती (साध्वी राजीमती) के सुभाषित वचनों को सुन कर रथनेमि (श्रमण-) धर्म में वैसे ही सुस्थिर हो गया, जैसे अंकुश से हाथी वश में हो जाता है / / विवेचन-वासेणुल्ला-वृष्टि से भीग गई अर्थात उसके सारे वस्त्र गीले हो गए थे। चीवराई-संघाटी (चादर) आदि वस्त्र / / भग्गचित्तो–संयम के प्रति जिसका परिणाम विचलित हो गया हो।। पच्छा दिट्टो० --शास्त्रकार का प्राशय यह है कि गुफा में अन्धेरा रहता है और अन्धकारप्रदेश में बाहर से प्रवेश करने वाले को सर्वप्रथम सहसा कुछ भी दिखाई नहीं देता / यदि दिखाई देता तो वर्षा की हड़बड़ी में शेष साध्वियों के अन्यान्य आश्रयस्थानों में चले जाने के कारण राजीमती अकेली वहाँ प्रवेश नहीं करती। इससे स्पष्ट है कि गुफा में रथनेमि है, यह राजीमती को पहले नहीं दिखाई दिया / बाद में उसने उसे वहाँ देखा।' भयभीत और कम्पित होने का कारण राजीमती वहाँ गुफा में अकेली थी और वस्त्र गीले होने से सुखा दिये थे, इसलिए निर्वस्त्रावस्था में थी, फिर जब उसने वहाँ रथनेमि को देखा, तब वह भयभीत हो गई कि कदाचित् यह बलात् शील भंग न कर बैठे, इसीलिए बलात् प्रालिंगनादि न करने देने हेतु झटपट अपने अंगों को सिकोड़कर वक्षस्थल पर अपनी दोनों भुजाओं से परस्पर गुम्फन करके यानी मर्कटबन्ध करके वह बैठ गई थी। फिर भी शीलभंग के भय से वह कांप रही थी। ममं भयाहि-(१) मां भजस्व-तू मुझे स्वीकार कर, (2) ममा भैषी तू बिलकुल डर मत।३ सुतनु--सुतनु का अर्थ होता है. --सुन्दर शरीर वाली। किन्तु विष्णुपुराण में उग्रसेन की एक पुत्री का नाम 'सुतनु' बताया गया है / संभव है, राजीमती का दूसरा नाम 'सुतनु' हो / भत्तभोगा तो पच्छा०–रथनेमि के द्वारा इन उद्गारों के कहने का तात्पर्य यह है कि 'मनुष्य जन्म अतीव दुर्लभ है। जब मनुष्य जन्म मिला ही है तो इसके द्वारा विषयसुखरूप फल का उपभोग कर लें। फिर भुक्तभोगी होने के बाद बुढ़ापे में जिनमार्ग-जिनोक्त मुक्तिपथ का सेवन कर लेंगे / 5 1. बृहद्वत्ति, पत्र 493 2. 'भीता च मा कदाचिदसौ मम शीलभंग विधास्यतीति कृत्वा सा बाहाहि...-बाहुभ्यां, कृत्वा संगोप, परस्पर बाहाम्फन स्तनोपरिमकंटबन्धमिति यावत / तदाश्लेषादिपरिहारार्थम, वेपमाना।-वही, पत्र 494 3. वही, पत्र 494 4. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 494, : सुतनु ! शब्द से राजीमती को सम्बोधित किया गया है। (ख) कंसा-कंसवती-सुतनु-राष्ट्रपालिकाह्वाश्चोग्रसेनस्य तनुजाः कन्याः। -विष्णुपुराण 4 / 14 / 21 5. बृहद्वत्ति, पत्र 494 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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