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________________ 376] [ उत्तराध्ययनसूत्र 41. जइ सि रूवेण वेसमणो ललिएण नलकूबरो। __तहा वि ते न इच्छामि जइ सि सक्खं पुरन्दरो॥ [41] 'हे रथनेमि ! यदि तुम रूप में वैश्रमण (कुबेर)-से होश्रो, लीला-विलास में नलकूबर देव जैसे होग्रो, और तो क्या, तुम साक्षात् इन्द्र भी होओ, तो भी मैं तुम्हें नहीं चाहती।' 42. पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं / नेच्छन्ति वतयं भोत्तुं कुले जाया अगंधणे // [42] 'अगन्धन कुल में उत्पन्न हुए सर्प धूम की ध्वजा वाली, जाज्वल्यमान, भयंकर दुष्प्रवेश (या दुःसह) अग्निज्वाला में प्रवेश कर जाते हैं, किन्तु वमन किये (उगले) हुए अपने विष को (पुनः) पीना नहीं चाहते।' 43. धिरत्थु तेऽजसोकामी! जो तं जीवियकारणा। वन्तं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे // [43] '(किन्तु) हे अपयश के कामी ! धिक्कार है तुम्हें कि तुम (भोगी) जीवन के लिए वान्त त्यागे हुए भोगों का पुन: प्रास्वादन करना चाहते हो! इससे तो तुम्हारा मर जाना श्रेयस्कर है। 44. अहं च भोयरायस्स तं च सि अन्धगवहिणो / मा कुले गन्धणा होमो संजमं निहुओ चर // [44] 'मैं भोजराज की (पौत्री) हूँ और तुम अन्धकवृष्णि के (पौत्र) हो / अतः अपने कुल में हम गन्धनजाति के सर्पतुल्य न बनें / तुम निभृत (स्थिर) होकर संयम का आचरण करो।' 45. जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारिओ। वायाविद्धो व्व हडो अप्रिप्पा भविस्ससि // 645] 'यदि तुम जिस किसी स्त्री को देख कर ऐसे ही रागभाव करते रहोगे, तो वायु से प्रकम्पित हड नामक निर्मूल वनस्पति की तरह अस्थिर चित्त वाले हो जाओगे।' 46. गोवालो भण्डवालो वा जहा तव्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि / / [46] 'जैसे गोपालक (दूसरे की गायें चराने वाला) अथवा भाण्डपाल (वेतन लेकर किसी के किराने का रक्षक) उस द्रव्य (गायों या किराने) का स्वामी नहीं होता; इसी प्रकार (संयमरहित, केवल वेषधारी होने पर) तुम भी श्रामण्य के स्वामी नहीं होगे।' 47. कोहं माणं निगिण्हित्ता मायं लोभं च सव्यसो / इन्दियाई बसे काउं अप्पाणं उवसंहरे // [47] 'तुम क्रोध, मान, माया और लोभ का पूर्ण रूप से निग्रह करके, इन्द्रियों को वश में करके अपने प्रापको उपसंहरण (अनाचार से विरत) करो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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