________________ बाईसवां अध्ययन : रथनेमीय] थी कि बीच में हो वर्षा से भीग गई। घनघोर वर्षा हो रही थी, (इस कारण चारों ओर) अन्धकार हो गया था। (इस स्थिति में) वह (एक) गुफा (लयन) के अन्दर (जा कर) ठहरी / 34. चीवराई विसारन्ती जहा जाय त्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि / / [34] सुखाने के लिए अपने चीवरों (वस्त्रों) को फैलाती हुई राजीमती को यथाजात (नग्न) रूप में देख कर रथनेमि का चित्त विचलित हो गया। फिर राजीमती ने भी उसे देख लिया। 35. भीया य सा तहिं दट्ट एगन्ते संजयं तयं / बाहाहि काउं संगोफ वेवमाणी निसीयई // [35] वहाँ (उस गुफा में) एकान्त में उस संयत को देख कर वह भयभीत हो गई / भय से कांपती हुई राजीमती अपनी दोनों बांहों से वक्षस्थल को पावृत कर बैठ गई। 36. अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगप्रो। भीयं पवेवियं दद्रु इमं वक्कं उदाहरे // [36] तब समुद्रविजय के अंगजात (पुत्र) उस राजपुत्र (रथनेमि) ने भी राजीमती को भयभीत और कांपती हुई देख कर इस प्रकार वचन कहा 37. रहनेमी अहं भद्दे ! सुरूवे ! चारुभासिणि ! / __ ममं भयाहि सुयणू ! न ते पीला भविस्सई / / [37] (रथनेमि)—'हे भद्रे ! हे सुन्दरि ! मैं रथनेमि हूँ। हे मधुरभाषिणी! तू मुझे (पति रूप में) स्वीकार कर / हे सुतनु ! (ऐसा करने से) तुझे कोई पीड़ा नहीं होगी।' 38. एहि ता भुजिमो भोए माणुस्सं खु सुदुल्लहं। भुत्तभोगा तओ पच्छा जिणमग्गं चरिस्समो // [38] 'निश्चित ही मनुष्यजन्म अतिदुर्लभ है / प्रायो, हम भोगों को भोगें। भुक्तभोगी होकर उसके पश्चात् हम जिनमार्ग (सर्वविरतिचारित्र) का आचरण करेंगे।' 39. दळूण रहनेमि तं भग्गुज्जोयपराइयं / राईमई असम्भन्ता अप्पाणं संवरे तहि // [36] संयम के प्रति भग्नोद्योग (निरुत्साह) एवं (भोगवासना या स्त्रीपरीषह से) पराजित रथनेमि को देख कर राजीमती सम्भ्रान्त न हुई (घबराई नहीं) / ' उसने वहीं (गुफा में ही) अपने शरीर को (वस्त्रों से) बँक लिया। 40. अह सा रायवरकन्ना सुठ्ठिया नियम-व्वए। जाई कुलं च सीलं च रक्खमाणो तयं वए / [40] तत्पश्चात् अपने नियमों और व्रतों में सुस्थित (अविचल) उस श्रेष्ठ राजकन्या (राजीमतो) ने जाति, कुल और शील का रक्षण करते हुए रथनेमि से कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org