________________ बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय] [371 23. उज्जाणं संपत्तो प्रोइण्णो उत्तिमाओ सीयाओ। साहस्सीए परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहि / / [23] उद्यान (सहस्राम्रवन) में पहुँच कर वे उत्तम शिविका से उतरे / (फिर) एक हजार व्यक्तियों के साथ भगवान् ने चित्रा नक्षत्र में अभिनिष्क्रमण किया। 24. अह से सुगन्धिगन्धिए तुरियं मउयकुचिए / सयमेव लुचई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ // [24] तदनन्तर समाहित (समाधिसम्पन्न) अरिष्टनेमि ने तुरन्त सुगन्ध से सुवासित अपने कोमल और घुघराले बालों का स्वयं अपने हाथों से पंचमुष्टि लोच किया / 25. वासुदेवो य णं भणइ लुत्लकेसं जिइन्दियं / इच्छियमणोरहे तुरियं पायेसु तं दमीसरा ! // [25] वासुदेव कृष्ण ने लंचितकेश एवं जितेन्द्रिय भगवान् से कहा-'हे दमीश्वर ! पाप अपने अभीष्ट मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो।' 26. नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तहेव या खन्तीए मुत्तीए वड्ढमाणो भवाहि य॥ [26] 'पाप ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षान्ति (क्षमा) और मुक्ति (निर्लोभता) के द्वारा आगे बढ़ो।' 27. एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा। अरिट्ठमि वन्दित्ता अइगया बारगापुरि / / [27] इस प्रकार बलराम, केशव, दशाह यादव और अन्य बहुत-से लोग अरिष्टनेमि को वन्दना कर द्वारकापुरी को लोट पाए / विवेचन–सपरिसा---यह 'देवों' का विशेषण है। सपरिषद् अर्थात् बाह्य, मध्यम और प्राभ्यन्तर, इन तीनों परिषदों से सहित / निक्खमणं काउं–निष्क्रमणमहिमा या निष्क्रमणमहोत्सव करने के लिए। सीयारयणं-शिविकारत्न--यह देवनिर्मित 'उत्तरकुरु' नाम की श्रेष्ठ शिविका थी / अहि निक्खमई--श्रमणदीक्षा ग्रहण की या श्रमणधर्म में प्रवजित हुए। समाहिओ-समाहित (समाधिसम्पन्न) शब्द अरिष्टनेमि का विशेषण है। इसका तात्पर्य यह है कि 'मुझे यावज्जीवन तक समस्त सावध व्यापार नहीं करना है' इस प्रकार की प्रतिज्ञा से युक्त हए।' रथ लौटाने से लेकर द्वारका में आगमन तक—पशु-पक्षियों को बन्धनमुक्त करवा कर ज्यों ही रथ वापिस लौटाया, त्यों ही मन में अभिनिष्क्रमण का विचार आते ही सारस्वतादि नौ प्रकार 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 492 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org