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________________ बाईसवां अध्ययन : रथनेमीय] 15. जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्ठा भक्खियव्वए। पासेत्ता से महापन्न सारहिं इणमब्बवी।। [15] वे जीवन की अन्तिम स्थिति में पहुंचे हुए थे, और मांसभोजन के लिए खाये जाने वाले थे। उन्हें देख कर उन महाप्रज्ञावान् अरिष्टनेमि ने सारथि (या पीलवान) से इस प्रकार कहा 16. कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो। वाडेहि पंजरेहि च सन्निरुद्धा य अहिं ? ___[16] (अरिष्टनेमि-) ये सब सुखार्थी प्राणी किस प्रयोजन के लिए बाड़ों और पिंजरों में बन्द किये गए हैं ? 17. अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विवाहकज्जंमि भोयावेउं बहुं जणं // [17] तब सारथि (इस प्रकार) बोला ये भद्र प्राणी आपके विवाहकार्य में बहुत-से लोगों को मांसभोजन कराने के लिए (यहाँ रोके गए) हैं / 18. सोऊण तस्स वयणं बहुपाणि-विणासणं / __ चिन्तेइ से महापन्न साणुक्कोसे जिएहि उ॥ [18] अनेक प्राणियों के विनाश से सम्बन्धित उसका (सारथि का) वचन सुन कर जीवों के प्रति करुणायुक्त होकर महाप्राज्ञ अरिष्टनेमि (यों) चिन्तन करने लगे---- 19. जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिति बहू जिया। __ न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई // [16] 'यदि मेरे कारण से इन बहुत-से प्राणियों का वध होगा तो यह परलोक में मेरे लिए निःश्रेयस्कर (कल्याणकारी) नहीं होगा।' 20. सो कुण्डलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो / प्राभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए / [20] उन महान् यशस्वी (अरिष्टनेमि) ने कुण्डलयुगल, करधनी (सूत्रक) और समस्त अलंकार उतार कर सारथि को दे दिए। (और बिना विवाह किये ही रथ को वहाँ से लौटाने का आदेश दिया।) विवेचन-जीवयंतं तु संपत्ते-(१) जीवन के अन्त को प्राप्त-मरणासन्न / ' मंसट्ठा-(१) मांस अतिगृद्धि का कारण होने से मांसाहार के लिए अथवा (2) 'मांस से ही मांस बढ़ता है' इस कहावत के अनुसार अविवेकी जनों द्वारा शरीर की मांसवृद्धि के लिए। 1. 'जीवितस्यान्तो मरणमित्यर्थस्तं सम्प्राप्तानिव सम्प्राप्तान् अतिप्रत्यासन्नत्वात्तस्य, यद्वा जीवितस्यान्तःपर्यन्तवर्ती भागस्तमुक्तहेतोः सम्प्राप्तान / ' -बहद्वत्ति, 490 मांसार्थ-मांसनिमित्तं च भक्षयितथ्यान मांसस्यैवातिगद्धिहेतुत्वेन तद्भक्षणनिमित्तत्वादेवमुक्तं, यदि वा 'मांसेनैव मासमुपचीयते' इति प्रवादतो मांसमुपचितं स्यादिति हेतो:-मांसाथ भक्षयितध्यानविवेकिभिः / वही, पत्र 491 Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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