________________ 366] [उत्तराध्ययनसूब 7. अह सा रायवर-कन्ना सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खणसंपन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा / / [7] वह (उग्रसेन) राजा की श्रेष्ठ कन्या सुशीला, चारुप्रैक्षिणी (सुन्दर दृष्टि वाली) तथा समस्त शुभ लक्षणों से सम्पन्न थी, उसके शरीर की प्रभा (-कान्ति) चमकती हुई विद्युत् की प्रभा के समान थी। 8. अहाह जणओ तोसे वासुदेवं महिड्ढियं / इहागच्छउ कुमारो जा मे कन्नं दलामऽहं / / [8] (याचना करने के पश्चात्) उस (राजीमती) के पिता ने महान् ऋद्धिशाली वासुदेव से कहा---(नेमि) कुमार यहाँ पाएँ तो मैं अपनी कन्या उन्हें प्रदान करूंगा।' 9. सव्वोसहीहि हविप्रो कयकोउयमंगलो। दिव्यजुयलपरिहिओ आभरणेहि विभूसिओ।। [6] (इसके पश्चात्) अरिष्टनेमि को समस्त औषधियों के जल से स्नान कराया गया, (यथाविधि) कौतुक और मंगल किये गए; दिव्य वस्त्र-युगल पहनाया गया और अलंकारों से विभूषित किया गया। 10. मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेट्टगं / आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा // [10] वे दूल्हा के रूप में वासुदेव के सबसे बड़े मत्त गन्धहस्ती पर जब आरूढ हुए (चढ़े) तो मस्तक पर चूडामणि के समान अत्यधिक सुशोभित हुए। 11. अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए। दसारचक्केण य सो सव्वओ परिवारियो। [11] तत्पश्चात वे अरिष्टनेमि मस्तक पर धारण किये हुए ऊँचे छत्र से तथा (ढलाते हुए) चामरों से सुशोभित थे और दशाहचक्र (यदुवंश के प्रसिद्ध क्षत्रियों के समूह) से चारों ओर से परिवृत (घिरे हुए) थे। 12. चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कम / तुरियाण सन्निनाएण दिवेण गगणं फुसे / [12] चतुरंगिणी सेना यथाक्रम से नियोजित की गई थी, वाद्यों का गगनस्पर्शी दिव्य निनाद होने लगा। 13. एयारिसोइ इड्डीए जुइए उत्तिमाइ य / नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वहिपुगयो / / [13] ऐसी उत्तम ऋद्धि और उत्तम द्युति सहित वह वृष्णिपुंगव (अरिष्टनेमि) अपने भवन से निकले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org