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________________ इक्कीसवाँ अध्ययन : समुद्रपालीय] [355 (शास्त्र) में पण्डित हो गया। युवावस्था आते ही पिता ने एक सुन्दर सुशील कन्या के साथ उसका पाणिग्रहण कर दिया। पिता का एक मात्र लाडला पुत्र समुद्रपाल अपने महल में दिव्य क्रीड़ा करने लगा। इस वर्णन से प्रतीत होता है कि पालित श्रावक ने समुद्रपाल को अभी तक व्यवसाय कार्य में नहीं लगाया था।' बहत्तर कलाओं का प्रशिक्षण-प्राचीन काल में प्रत्येक सम्भ्रान्त नागरिक अपने पुत्र को 72 कलाओं का प्रशिक्षण दिलाता था, जिससे वह प्रत्येक कार्य में दक्ष और स्वावलम्बी बन सके / शास्त्रों में यत्र-तत्र 72 कलात्रों का उल्लेख मिलता है।' ___ सुरूवे पियदंसणे-सुरूप का अर्थ है-प्राकृति और डीलडौल से सुन्दर तथा प्रियदर्शन का अर्थ है-सभी को प्रानन्द देने वाला / ' समद्रपाल की विरक्ति और दीक्षा 8. अह अन्नया कयाई पासायालोयणे ठिओ। वज्झमण्डणसोभागं वज्झं पासइ बज्झगं / / [8] तत्पश्चात् एक दिन वह प्रासाद के आलोकन (अर्थात् झरोखे) में बैठा था, (तभी) उसने वध्य के मण्डनों से शोभित एक वध्य (चोर) को नगर से बाहर (वधस्थल की ओर) ले जाते हुए देखा। 9. तं पासिऊण संविग्गो समुद्दपालो इणमब्बवी। अहोऽसुभाण कम्माणं निज्जाणं पावगं इमं // [6] उसे देख कर संवेग को प्राप्त समुद्रपाल ने (मन ही मन) इस प्रकार कहा-अहो ! (खेद है कि) अशुभकर्मों का यह पापरूप (--अशुभ -दुःखद) निर्याण-परिणाम है। 10. संबुद्धो सो तहिं भगवं परं संवेगमागओ। आपुच्छ ऽम्मापियरो पव्वए अणगारियं / [10] इस प्रकार वहाँ (गवाक्ष में) बैठे हुए वह भगवान् (-माहात्म्यवान्) परम संवेग को प्राप्त हुआ और सम्बुद्ध हो गया। (फिर) उसने माता-पिता से पूछ कर, उनकी अनुमति लेकर अनगारिता (-मुनिदीक्षा) अंगीकार की। विवेचन-बज्झमंडणसोभाग-वध्य-वध के योग्य व्यक्ति के मण्डनों-रक्तचन्दन, करवीर आदि से-शोभित / प्राचीन काल में मृत्युदण्ड-योग्य व्यक्ति को लाल कपड़े पहनाए जाते थे, उसके शरीर पर लाल चन्दन का लेप किया जाता, उसके गले में लाल कनेर की माला पहनाई जाती थी 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 483 2. बहत्तर कलानों के लिये देखिये, 'समवायांग', समवाय 72 3. बृहद्वत्ति, पत्र 483 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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