________________ 354]] [उत्तराध्ययनसूत्र पिहुण्ड नगर में विवाह, समुद्रपाल का जन्म 3. पिहुण्डे बवहरन्तस्स वाणिो देइ धूयरं / तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ / 3] पिहण्ड नगर में व्यवसाय करते समय उसे (पालित श्रावक को) किसी वणिक ने अपनी पुत्री प्रदान की। कुछ समय के पश्चात् अपनी सगर्भा पत्नी को लेकर उसने स्वदेश की ओर प्रस्थान किया। 4. अह पालियस्स घरणी समुद्घमि पसवई / ___ अह दारए तहि जाए 'समुद्दपालि' ति नामए / [4] पालित श्रावक की पत्नी ने समुद्र में ही पुत्र को जन्म दिया। वह बालक वहीं (समुद्र में) जन्मा, इस कारण उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा गया। विवेचन-वाणियो देइ धूयरं-पिहुण्ड नगर में न्यायनीतिपूर्वक व्यापार करते हुए पालित श्रावक के गुणों से आकृष्ट होकर वहीं के निवासी वणिक् ने उसे अपनी कन्या दे दी। अर्थात्-वणिक ने अपनी कन्या का विवाह पालित के साथ कर दिया / ' समुद्रपाल का संवर्द्धन, शिक्षण एवं पाणिग्रहण 5. खेमेण आगए चम्पं सावए वाणिए घरं। संवड्ढई घरे तस्स दारए से सुहोइए / / [5] वह वणिक् श्रावक क्षेमकुशलपूर्वक चम्पापुरी में अपने घर आ गया। वह सुखोचित (सुखभोग के योग्य सुकुमार) बालक उसके घर में भलीभांति बढ़ने लगा। 6. बावरि कलाओ य सिक्खए नीइकोविए। जोवणेण य संपन्ने सुरूवे पियदसणे // [6] वह बहत्तर कलाओं में शिक्षित तथा नीति में निपुण हो गया / यौवन से सम्पन्न (होकर) वह 'सुरूप' और देखने में प्रिय लगने लगा। 7. तस्स रूववइं भज्जं पिया आणेइ रूविणीं / पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुन्दओ जहा // [7] उसके पिता ने उसके लिए 'रूपिणी' नाम की रूपवती पत्नी ला दी। वह (अपनी पत्नी के साथ) दोगुन्दक देव की भांति रमणीय प्रासाद में क्रीड़ा करने लगा। विवेचन–समुद्रपाल का संवर्द्धन-प्रस्तुत गाथा 5-6 में समुद्रपाल का संवर्द्धनक्रम का उल्लेख है / घर में ही उसका लालन-पालन होता है, कुछ बड़ा होने पर वह कलाग्रहण के योग्य हुआ तो पिता ने उसे 72 कलाओं का प्रशिक्षण दिलाया। कलाओं में प्रशिक्षित होने के साथ ही नीति 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 483 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org