________________ एगविसइमं अज्झयणं : इक्कीसवाँ अध्ययन समुद्दपालीयं : समुद्रपालीय पालित श्रावक और पिहुण्ड नगर में व्यापारनिमित्त निवास 1. चम्पाए पालिए नाम सावए पासि वाहिए। महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो // [1] चम्पानगरी में 'पालित' नामक एक वणिक् श्रावक था / वह महान् प्रात्मा (विराट् पुरुष) भगवान् महावीर का (गृहस्थ-) शिष्य था। 2. निग्गन्थे पावयणे सावए से विकोविए। पोएण ववहरन्ते पिहुण्डं नगरमागए। [2] वह श्रावक निर्ग्रन्थ-प्रवचन का विशिष्ट ज्ञाता था / (एक बार वह) पोत (जलयान) से व्यापार करता हुआ पिहुण्ड नगर में पाया। विवेचन सावए : श्रावक-श्रावक का सामान्य अर्थ तो श्रोता होता है, किन्तु यहाँ श्रावक शब्द विशेष अर्थ-श्रमणोपासक अर्थ में प्रयुक्त है / भगवान् महावीर के चतुर्विध धर्मसंघ में साधु और साध्वी-दो त्यागीवर्ग में तथा श्रावक और श्राविका - दो गृहस्थवर्ग में आते हैं। श्रावक देशविरति चरित्र का पालन करता है / श्रावकधर्म पालन के लिए पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षावत; यों बारह व्रतों का विधान है।' निग्गंथे पाक्यणे विकोविए-निर्ग्रन्थ सम्बन्धी प्रवचन का अर्थ निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर आदि से सम्बन्धित प्रवचन-सिद्धान्त या तत्त्वज्ञान का विशिष्ट ज्ञाता / बृहद्वत्तिकार ने कोविद का प्रासंगिक अर्थ किया है—जीवादि पदार्थों का ज्ञाता / पोएण ववहरते---इससे प्रतीत होता है कि पालित थावक जलमार्ग से बड़ी-बड़ी नौकानों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल का प्रायात-निर्यात करता था। उसी दौरान एक बार वह जलमार्ग से व्यापार करता हुआ उस समय व्यापार के लिए प्रसिद्ध पिहुण्ड नगर में पहुँचा। वहीं उसने अपना व्यापार जमा लिया, यह आगे की गाथा से स्पष्ट है / 3 1. (क) श्रावक का लक्षण एक प्राचीन श्लोक के अनुसार-- श्रद्धालुतां श्राति, शृणोति शासनं, शनं वपेदाशु वृणोति दर्शनम् / कृन्तत्यपुण्यानि करोति संयम, तं श्रावकं प्राहरमी विचक्षणाः / / (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 482 (ग) स्थानांगसूत्र, स्थान 4 / 4 / 363 2. बृहदवत्ति, पत्र 482 : विशेषेण कोविदः-विकोविदः पण्डित:, कोऽर्थ: ? विदितजीवादिपदार्थः / 3. वही, पत्र 462 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org