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________________ 352] [उत्तराध्ययनसूत्र इस अध्ययन के उत्तरार्द्ध में (गा. 11 से 23 तक) अनगारधर्म के मौलिक नियमों और साध्वाचार की महत्त्वपूर्ण चर्चा है / यथा--महाक्लेशकारी संग का परित्याग करे, व्रत, नियम, शील एवं साधुधर्म के पालन तथा परीषह-सहन में अभिरुचि रखे, अहिंसादि पंचमहाव्रतों का तथा जिनोक्त श्रुत-चारित्रधर्म का आचरण करे, सर्वभूतदया, सर्वेन्द्रियनिग्रह, क्षमा आदि दशविध श्रमणधर्म तथा सावद्ययोगत्याग का सम्यक् आचरण एवं शीतोष्णादि परीषहों को समभावपूर्वक सहन करे, राग-द्वेष-मोह का त्याग करके आत्मरक्षक बने / सर्वभूतत्राता मुनि पूजा-प्रतिष्ठा होने पर हृष्ट तथा गर्दा होने पर रुष्ट न हो, अरति-रति को सहन करे, प्रात्महितैषी साधक शोक, ममत्व, गृहस्थसंसर्ग आदि से रहित हो, अकिंचन साधु समभाव एवं सरलभाव रखे, सम्यग्दर्शनादि परमार्थ साधनों में स्थिर रहे, साधु प्रिय और अप्रिय दोनों प्रकार की परिस्थितियों को समभाव से सहे, जो भी अच्छी वस्तु देखे या सुने उसकी चाह न करे, साधु समयानुसार अपने बलाबल को परख कर विभिन्न देशों में विचरण करे, भयोत्पादक शब्द सुनकर भी घबराए नहीं, न असभ्य वचन मनकर बदले में असभ्य वचन कहे. देव-मनुष्य तिर्यञ्चकृत भीषण उपसर्गों को सहन करे, संसार में मनुष्यों के विविध अभिप्राय जानकर उन पर स्वयं अनुशासन करे, निर्दोष, बीजादिरहित, ऋषियों द्वारा स्वीकृत विविक्त एकान्त आवासस्थान का सेवन करे, अनुत्तर धर्म का आचरण करे, सम्यग्ज्ञान उपार्जन करे तथा पुण्य और पाप दोनों प्रकार के कर्मों का क्षय करने के लिए संयम में निश्चल रहे और समस्त प्रतिवन्धों से मुक्त होकर संसार-समुद्र को पार करे / प्रस्तुत अध्ययन में उस युग के व्यवहार (क्रय-विक्रय), वध्यव्यक्ति को दण्ड देने की प्रथा, वैवाहिक सम्बन्ध एवं मुनिचर्या में सावधानी आदि तथ्यों का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है / समुद्रपाल मुनि बनकर प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित साध्वाचारपद्धति के अनुसार विशुद्ध संयम का पालन करके, सर्वकर्मक्षय करके सिद्ध-मुद्ध-मुक्त हो गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जिस ध्येय से उसने मुनिधर्म ग्रहण किया था, उसको सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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