________________ बीसवाँ अध्ययन : महानिग्रंथीय] [349 संतुष्ट एवं प्रभावित श्रेणिक राजा द्वारा महिमागानादि 54. तुट्ठो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली। प्रणाहत्तं जहाभूयं सुठ्ठ मे उवदंसियं / / [54] (मुनि से सनाथ अनाथ का रहस्य जान कर) राजा श्रेणिक सन्तुष्ट हुआ / हाथ जोड़ कर उसने इस प्रकार कहा--भगवन् ! अनाथता का यथार्थ स्वरूप आपने मुझे सम्यक् प्रकार से समझाया। 55. तुझं सुलद्ध खु मणुस्सजम्मं लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी! तुब्भे सणाहा य सबन्धवा य जंभे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं // [55] (राजा श्रेणिक) हे महषि ! आपका मनुष्यजन्म सुलब्ध (-सफल) है, आपकी उपलब्धियाँ सफल हैं / आप सच्चे सनाथ और सबान्धव हैं, क्योंकि आप जिनेश्वरों के मार्ग में स्थित हैं। 56. तं सि नाहो अणाहाणं सव्वभूयाण संजया ! खामेमि ते महाभाग! इच्छामि अणुसासिउं / [56] हे संयत ! आप अनाथों के नाथ हैं, आप सभी जीवों के नाथ हैं। हे महाभाग ! मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ। मैं आप से अनुशासित होने की (शिक्षाप्राप्ति की) इच्छा रखता हूँ। 57. पुच्छिऊण मए तुम्भं झाणविग्धो उ जो कओ / निमन्तियो य भोगेहिं तं सव्वं मरिसेहि मे // [57] मैंने आप से प्रश्न पूछ कर जो (आपके) ध्यान में विघ्न डाला और भोगों के लिए आपको आमंत्रित किया, उस सबके लिए मुझे क्षमा करें (सहन करें)। 58. एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाइ भत्तिए / सओरोहो य सपरियणो य धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा / / [58] इस प्रकार वह राज-सिंह (श्रेणिक राजा) परमभक्ति के साथ अनगार-सिंह की स्तुति करके अपने अन्तःपुर (रानियों) तथा परिजनों सहित निर्मल चित्त होकर धर्म में अनुरक्त हो गया। 59. ऊससिय-रोमकूवो काऊण य पयाहिणं / अभिवन्दिऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो // [56] राजा (नराधिप) के रोमकूप (हर्ष से) उच्छ्वसित (-उल्लसित) हो गए। वह मुनि की प्रदक्षिणा करके और नतमस्तक होकर वन्दना करके लौट गया / विवेचन-लाभा सुलद्धा-सुन्दर वर्ण, रूप आदि की प्राप्तिरूप लाभ, अथवा धर्मविशेष की उपलब्धियों का अच्छा लाभ कमाया, क्योंकि ये उत्तरोत्तर गुणवृद्धि के कारण हैं / अणुसासिउं-मैं आपसे शिक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। रायसीहो, अणगारसीहं-राजारों में अतिपराक्रमी होने से श्रेणिक को शास्त्रकार ने राज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org