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________________ 348] उत्तराध्ययनसूत्र शोक करता है।' महानिर्ग्रन्थपथ पर चलने का निर्देश और उसका महाफल 51. सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं / मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं // [51] (मुनि)—मेधावी (बुद्धिमान्) साधक इस (पूर्वोक्त) सुभाषित को एवं ज्ञानगुण से युक्त अनुशासन (शिक्षा) को श्रवण कर कुशील लोगों के सर्व मार्गों को त्याग कर महानिर्ग्रन्थों के पथ पर चले। 52. चरित्तमायारगुणन्निए तमो अणुतरं संजम पालियाणं / निरासवे संखवियाण कम्मं उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं / / [52 तदनन्तर चारित्राचार और ज्ञान, शील आदि गुणों से युक्त निर्ग्रन्थ अनुत्तर (सर्वोत्कृष्ट) सुसंयम का पालन कर, निराश्रव (रागद्वेषादि बन्धहेतुओं से मुक्त) होकर कर्मों का क्षय कर विपुल, उत्तम एवं ध्र व स्थान-मोक्ष को प्राप्त कर लेता है / 53. एवुग्गदन्ते वि महातवोधणे महामुणी महापइन्ने महायसे / महानियण्ठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं / / [53| इस प्रकार (कर्मशत्रुओं के प्रति) उग्र एवं दान्त (इन्द्रिय एवं मन को वश में करने वाले), महातपोधन, महाप्रतिज्ञ, महायशस्वी महामुनि ने इस महानिर्ग्रन्थीय महाश्रुत को (राजा श्रेणिक के अनुरोध से) बड़े विस्तार से कहा। विवेचन-मेहावि--'मेधावी' शब्द साधक का विशेषण है। (2) श्रेणिक राजा के लिए 'मेधाविन् ! (हे बुद्धिमान् राजन् ! ), शब्द से सम्बोधन है / ' संजम–संयम का अर्थ यहाँ यथाख्यातचारित्रात्मक संयम है। चरित्तमायारगुणन्निए-चारित्र का प्राचाररूप यानी आसेवनरूप गुण, अथवा गुण का अर्थ यहाँ प्रसंगवश ज्ञान है / चारित्राचार एवं (ज्ञानादि) गुणों से जो अन्वित हो वह 'चारित्राचारगुणान्वित' है। महानियंठिज्ज-महानिर्ग्रन्थीयम् -- महानिर्ग्रन्थों के लिए हितरूप महानिर्ग्रन्थीय। .........."यथा चैषा प्रामिषगद्धा पक्ष्यन्तरेभ्यो विपत्प्राप्तौ शोचते, न च ततः कश्चित विपत्प्रतीकार इति, एवमसावपि भोगरसगद्धः ऐहिकामुष्मिकाऽनर्थप्राप्तौ, ततोऽस्य स्वपरपरित्राणाऽसमर्थत्वेनाऽनाथत्वमिति भावः।" -बही, पत्र 400 2. (क) उत्तरा. (अनुवाद विवेचन मुनि नथमलजी) भा. 1, पृ. 270 (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 480 3. महानिर्ग्रन्थेभ्यो हितम्---महानिर्ग्रन्थीयम् / -वही, पत्र 480 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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